Tibet Buddhist Library News- जब तलवारें खामोश हो जाती हैं- तब किताबें बोलती हैं,,
तिब्बत की बर्फीली पहाड़ियों के बीच छुपी एक प्राचीन लाइब्रेरी इन दिनों दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। यह केवल किताबों का ढेर नहीं, बल्कि बौद्ध धर्म के सदियों पुराने ज्ञान और मानव सभ्यता की धरोहर का प्रतीक है।
क्या है यह खबर ?
हाल ही में सोशल मीडिया और कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि तिब्बत में स्थित शाक्य मठ Sakya Monastery के अंदर 952 साल पुरानी एक लाइब्रेरी है, जहां 84,000 से अधिक प्राचीन पांडुलिपियाँ सुरक्षित रखी गई हैं।
इन ग्रंथों में केवल धार्मिक साहित्य ही नहीं, बल्कि खगोलशास्त्र, चिकित्सा, गणित, इतिहास, कृषि, योग और दर्शन जैसे विषयों का भी गहरा ज्ञान दर्ज है।
Tibet Buddhist Library- बौद्ध ज्ञान केंद्र
तिब्बत सदियों से बौद्ध धर्म का गढ़ रहा है। यहां के मठ Monasteries न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र हैं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान को संरक्षित करने वाले विशाल पुस्तकालय भी हैं।
बौद्ध धर्म की शिक्षा में हमेशा से ही अध्ययन और शोध को विशेष महत्व दिया गया है। इसलिए, यहां के मठों में जो ग्रंथ संरक्षित हैं, वे केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि विज्ञान, तर्क, चिकित्सा और समाजशास्त्र के भी प्रमाणिक स्रोत हैं।
शाक्य मठ : ज्ञान का महासागर
सबसे बड़ा दावा जिस जगह से जुड़ा है वह है शाक्य मठ। यह मठ 1073 ईस्वी में स्थापित हुआ था जो तिब्बत के शाक्य जिले में स्थित है। इसे बौद्ध धम्म का सबसे बड़ा पुस्तकालय माना जाता है इसमें लगभग 40000 से ज्यादा पांडुलिपियां सुरक्षित रखी हुई है। यहां ग्रंथ ताड़पत्र,कपड़े और हाथ से बने कागजो पर लिखे गए हैं कुछ ग्रंथों पर सोने और चांदी की स्याही का प्रयोग भी किया गया है।

शाक्य मठ तिब्बत फोटो – एंटोनी टैवेनॉक्स
शाक्य मठ की लाइब्रेरी की लंबाई लगभग 60 मीटर और ऊँचाई 10 मीटर है, जिसमें 84,000 से अधिक ग्रंथ और पांडुलिपियाँ रखी गई हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध पुस्तकालयों में से एक माना जाता है।
कुछ पांडुलिपियाँ इतनी लंबी और गहन हैं कि उन्हें पढ़ने में हफ्तों लग जाते हैं। एक विशेष ग्रंथ का वजन लगभग 500–1,100 किलोग्राम है, जो दुनिया का सबसे भारी ग्रंथ माना जाता है।
प्रसिद्ध बौद्ध लाइब्रेरी
पोताला पैलेस लाइब्रेरी – यह लाइब्रेरी दलाई लामा के निवास स्थान ल्हासा में स्थित है। यहां हजारों की संख्या में पांडुलिपियां सुरक्षित रखी हुई है।
टाशी ल्हुन्पो मठ- 1447 ईस्वी में स्थापित इस मठ में बौद्ध दर्शन, कर्मकांड और खगोल शास्त्र पर आधारित दुर्लभ पांडुलिपियां यहां रखी गई है।
इतिहासकारों की नजर से
इतिहासकारों का मानना है कि तिब्बत के कई मठों में नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से लाए गए ग्रंथ आज भी सुरक्षित रखे हुए हैं । मंगोल और चीनी आक्रमणों के दौरान, कई बौद्ध विद्वान भारत से तिब्बत चले गए और अपने साथ ज्ञान का विशाल भंडार ले गए।
भारतीय विद्वान सरत चंद्र दास ने अपने लेखो में बताया कि यहां की कुछ पांडुलिपियाँ सोने की स्याही में लिखी गई हैं और उनमें चित्रकारी इतनी बारीक है कि आज की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी भी उसकी बराबरी नहीं कर सकती।
डिजिटाइजेशन की शुरुआत
2003 में Tibetan Academy of Social Sciences ने इस लाइब्रेरी का विस्तृत सर्वेक्षण किया। 2011 में डिजिटाइजेशन का कार्य शुरू हुआ, ताकि इन अमूल्य ग्रंथों को समय और बदलते पर्यावरण की क्षति से बचाया जा सके लगभग 20% से अधिक का डिजिटाइजेशन हो चुका है और डिजिटाइजेशन का काम जारी है।

लाइब्रेरी शाक्य मठ तिब्बत फोटो- रिचर्ड मोर्टेल
मिथक और सच्चाई
सोशल मीडिया पर कई बार यह दावा किया गया कि लाइब्रेरी में 10,000 वर्षों का मानव इतिहास दर्ज है। यह दावा ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सही नहीं है, क्योंकि लिखित मानव इतिहास लगभग 5,000 साल पुराना माना जाता है।
हालाँकि, यह सच है कि साक्या मठ की लाइब्रेरी में कई हजार साल पुराने ग्रंथ और ज्ञान का भंडार मौजूद है, जो किसी भी सभ्यता के लिए गर्व की बात है।
यह विरासत क्यों जरूरी है ?
सांस्कृतिक धरोहर यह भारत और तिब्बत की साझा ऐतिहासिक धरोहर है। शोध का खजाना इतिहास, विज्ञान, चिकित्सा और दर्शन का अनमोल स्रोत है। ये पांडुलिपिया आध्यात्मिक प्रेरणा बौद्ध दर्शन और ध्यान पद्धतियों का मूल आधार है। वैश्विक ज्ञान का पुनरुत्थान डिजिटलीकरण के जरिए पूरी दुनिया इस ज्ञान से जुड़ सकती है।
भविष्य के लिए जिम्मेदारी
इन पांडुलिपियों का संरक्षण केवल तिब्बत या बौद्ध अनुयायियों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह पूरी मानवता का कर्तव्य है। ये ग्रंथ हमें बताते हैं कि जिस देश में किताबें बची रहती हैं, वहां संस्कृति कभी नहीं मरती।
शाक्य मठ की 952 साल पुरानी यह लाइब्रेरी केवल पुस्तकों का संग्रह नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की आत्मा है। 84,000 ग्रंथों में निहित ज्ञान हमें अतीत से जोड़ता है और भविष्य को दिशा देता है। इस धरोहर को सुरक्षित बचाकर रखना आने वाली पीढ़ियों के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना आज हमारे लिए इसका अध्ययन और सम्मान करना।
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