Sindhu Sabhyata True History
Sindhu Sabhyata – क्या आपने कभी सोचा है कि आज से हज़ारों साल पहले, जब न बिजली थी, न इंटरनेट, तब लोग कैसे रहते होंगे ? क्या वे असभ्य इन्सान थे ? या फिर हमसे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली और संगठित, जितना हम सोच भी नहीं सकते ? सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, इसी सवाल का उत्तर देती है। यह केवल प्राचीन ईंटों और खुदाई में मिली वस्तुओं की कहानी नहीं है, यह उस भारत की गवाही है, जिसने दुनिया को सभ्यता और विज्ञान की असली परिभाषा दी। इस लेख में हम सिंधु घाटी की रहस्यमयी, वैज्ञानिक और प्रेरणादायक दुनिया में कदम रखते हैं।
कैसे सामने आया सिंधु सभ्यता का इतिहास
1920 के दशक में ब्रिटिश राज के दौरान पंजाब प्रांत जोकि अब पाकिस्तान में है के हड़प्पा गांव में रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी। मजदूरों को खुदाई में कुछ अजीब ईंटें मिलीं। ये ईंटें साधारण नहीं थीं, और जब इनकी जांच की गई तो सामने आया कि ये एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष हैं।
1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खुदाई शुरू करवाई। ठीक एक साल बाद, 1922 में सिंध प्रांत के मोहनजोदड़ो में भी खुदाई हुई, जिसका काम सर जॉन मार्शल की देख रेख में हुआ। धीरे-धीरे इन खुदाइयों से इतिहास से मिट्टी हटती गई और सामने आई एक चौंकाने वाली सभ्यता ,जो मिस्र और मेसोपोटामिया से भी पुरानी मानी जाने लगी।
एक अद्भुत साम्राज्य –
सिंधु घाटी सभ्यता सिर्फ हड़प्पा या मोहनजोदड़ो तक सीमित नहीं थी। इसके प्रमाण आज के पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान और बलूचिस्तान में फैले हुए हैं। भारत के प्रमुख स्थलों में राखीगढ़ी (हरियाणा), धोलावीरा और लोथल (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान) आदि शामिल हैं। लोथल में दुनिया की सबसे पुरानी डॉकयार्ड मिली है, और धोलावीरा को UNESCO ने विश्व धरोहर घोषित किया है।
क्या यह भारत की सभ्यता थी ?
जब कोई कहता है कि सिंधु घाटी सभ्यता पाकिस्तान में है, तो वो केवल वर्तमान की सीमाएं देखता है। असल में यह सभ्यता उस समय की है जब भारत और पाकिस्तान एक ही सांस्कृतिक भूमि थे। ये हमारी साझा विरासत है। सिंधु नदी की धारा तब भी बहती थी, जब कोई सीमा नहीं थी। यह सभ्यता ‘अखंड भारत’ का उदाहरण है।
सिटी मैनेजमेंट — आज के शहर भी शर्मिंदा हो जाएं
5000 साल पहले भी इस सभ्यता के नगर आज के आधुनिक शहरों से कहीं ज़्यादा शानदार थे। यहां की सड़के ग्रिड पैटर्न प्लानिंग पर बनी थी। उस समय घर भी पक्की ईंटों से बनाये जाते थे। हर घर में शौचालय और पानी की व्यवस्था देखने को मिलती है । और एक चीज जो आज के शहरों को भी शर्मिंदा कर दे वह है ढकी हुई नालियां वही हर-घर में कुएं और पानी की व्यवस्था थी । इन सबने सिद्ध कर दिया कि ये लोग इंजीनियरिंग और विज्ञान में बेहद आगे थे।
द ग्रेट बाथ का राज
मोहनजोदड़ो का महास्नानागार यानी ग्रेट बाथ सिर्फ एक तालाब नहीं था, शायद यह दुनिया का पहला पब्लिक जलाशय था। ईंटों से बनी इसकी संरचना और वाटरप्रूफिंग में उपयोग किया गया तारकोल, इस बात की गवाही देता है कि ये लोग वास्तुशिल्प और वाटर मैनेजमेंट के बेहतरीन ज्ञान से परिचित थे।
सिंधु लिपि — एक अनसुलझा रहस्य –
सिंधु घाटी की लिपि आज भी वैज्ञानिकों और भाषाविदों के लिए रहस्य बनी हुई है। अब तक 400-600 चिन्हों की पहचान की गई है, लेकिन इसका कोई सटीक अनुवाद नहीं मिल पाया है। यह चित्रलिपि यानी पिक्टोग्राफी दाएं से बाएं लिखी जाती थी। आज भी पूरी दुनिया के सामने यह लिपि एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है।
साल 2002 में इरावतम महादेवन ने दावा किया कि उसने सिंधु लिपि को पढ़ लिया है । उनका तर्क था इस भाषा को गोंडी लैंग्वेज में समझा जा सकता है। इस पर उन्होंने एक पूरी किताबें लिखी जिसका नाम था सिंधु लिपि इन गोंडी लैंग्वेज
असल में सिंधु लिपि को आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है और दुनिया के बड़े-बड़े विद्वानों ने अलग-अलग अनुमान लगाए हैं। कुछ विद्वानों ने इसे साइन लैंग्वेज बताया तो वही साल 2000 के दशक में कुछ इतिहासकारों ने सिंधु लिपि को भाषा मानने से ही इनकार कर दिया।
शायद एक दिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कोई विद्वान इस रहस्य को सुलझा दे ! अगर कभी यह लिपि पढ़ी गई तो शायद दुनिया का इतिहास दोबारा लिखा जाएगा और दुनिया के सामने कुछ ऐसे राज आ सकते हैं जिनसे आज भी इंसान अनजान है।
खुदाई में मिली अनोखी वस्तुएं
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि आज से 5000 साल पहले लोग आभूषण पहनते थे, मूर्तियां बनाते थे, और भी बहुत से कम जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते, खुदाई में कांस्य से बनी नृत्य करती एक लड़की की मूर्ति मिली है, और एक राजा जैसी मूर्ति (Priest King), मिली है शायद उस समय भी कोई राजा होता था हो सकता है यह उसी का उदाहरण हो। खुदाई के दौरान कुछ मुहरें मिली है जिन पर पशुओ के चित्र बने हुए हैं और सिंधु लिपि में चिन्ह भी बने हुए हैं। वही मिट्टी के खिलौने, चक्की, आभूषण, यह सभी उनकी संस्कृति को दर्शाते हैं।
शायद उस समय में व्यापार की समझ लोगों को जिसका प्रमाण खुदाई में मिले बाट और तराजू है। इन सबने यह सिद्ध किया कि यह सभ्यता केवल तकनीकी रूप से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी समृद्ध थी।
धर्म और समाज की पहेली
इस सभ्यता में कोई भव्य मंदिर नहीं मिले, जो यह दर्शाता है कि ये लोग अधिकतर धर्मनिरपेक्ष थे। पशुपति जैसी आकृतियाँ शिव के प्रारंभिक रूप की ओर संकेत करती हैं और स्त्री की मूर्तियाँ मातृ देवी की पूजा की और इशारा करती है।
दुनिया से जुडाव और व्यापार
सिंधु सभ्यता के व्यापारी मेसोपोटामिया आज का इराक तक व्यापार करते थे। लोथल का बंदरगाह समुद्री व्यापार की गवाही देता है। यह सभ्यता भारत की पहली वैश्विक आर्थिक शक्ति थी।
कैसे समाप्त हुई यह शानदार सभ्यता ?
एक सवाल जो आज भी दुनिया के सामने है आखिर इतनी शानदार सभ्यता का अंत कैसे हुआ। दुनिया के विद्वानों और इतिहासकारों के इस पर अलग-अलग विचार हैं।
कुछ इतिहासकारों का कहना है की हो सकता है कोई बड़ा भूकंप या बाढ़ के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ हो। या हो सकता है कोई प्राकृतिक आपदा या भयंकर बीमारी ने इस सभ्यता को तहस नहस कर दिया हो । वहीं कुछ विद्वान यह भी मानते हैं की जलवायु परिवर्तन या नदियों की दिशा बदलने के कारण यह सभ्यता मिट्टी में समा गई हो।
इन सभी में ज्यादातर विद्वानों का मत है कि उस समय की नदी घग्गर, हकरा सरस्वती नदी के सूख जाने से हो सकता है इस सभ्यता का पतन हो गया हो।
हुआ कुछ भी हो प्रकृति बहुत ही ताकतवर है वह कभी भी किसी भी चीज को मिटा भी सकती है और बना भी सकती है। सही बात इस सभ्यता की तो वह तो आने वाला समय ही बताएगा कि आखिर क्या हुआ था।
हमारी जड़ें, हमारी पावर –
सिंधु सभ्यता हमें ये सिखाती है कि अगर आप एकजुट हैं, सफाई को प्राथमिकता देते हैं टेक्नोलॉजी व संस्कृति में बैलेंस बनाकर रखते हैं — तो आप एक महान समाज बना सकते हैं।
आज जब हम स्मार्ट सिटी और विकास की बातें करते हैं, तो हमें 5000 साल पुरानी अपनी ही सभ्यता से सीख लेनी चाहिए। यही हमारी असली राष्ट्रभक्ति होगी।
इतिहास का मतलब सिर्फ मिट्टी से निकली कुछ पुरानी चीजे नहीं होती। यह जीता जागता उदाहरण है हमारे पूर्वजों की जीवन शैली का।