SC/ST Act की सच्चाई ! पूरी जानकारी..

SC/ST Act 1989SC/ST Act TruthImage Source I Stock
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Sc/St Act- अगर कोई व्यक्ति दलित होने की वजह से अपमानित किया जाए, तो क्या वो चुप रहे ?
इस सवाल से निकल कर आया एक ऐसा कानून जो भारतीय समाज में बहस का बड़ा कारण है । SC/ST Act यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989

SC/ST Act क्या है ?

एससी एसटी एक्ट भारत सरकार द्वारा 1989 में बनाया गया था। इसका उद्देश्य है कि दलितों और आदिवासियों पर हो रहे शोषण, उत्पीड़न, और भेदभाव को रोका जाए और यदि उनके साथ अत्याचार होता है, तो दोषियों को कठोर दंड दिया जा सके।

यह कानून कहता है भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर अगर कोई अत्याचार होगा तो एससी एसटी एक्ट उनका संरक्षण करेगा और दोषियों को कठोर से कठोर सजा दिलाने में मदद करेगा ।

Sc/st समाज के लोगों के साथ जब जातिगत आधार पर अपमान, मारपीट ,ज़मीन पर कब्ज़ा या सामाजिक बहिष्कार जैसे अत्याचार होते हैं, तब यह कानून एक वरदान की तरह काम करता है।

SC/ST Act किसकी सरकार में आया ?

एससी एसटी एक्ट 11 सितंबर 1989 को राजीव गांधी सरकार में लाया गया। 1 जनवरी 1990 से यह लागू हुआ। समय-समय पर इस कानून में संशोधन हुए लेकिन 2015 और 2018 में बड़े बदलाव किए गए। जिसकी बात हम आगे करेंगे।

क्या कहता है SC/ST Act

SC/ST वर्ग के किसी व्यक्ति को जातिगत नाम से अपमानित करना, धमकाना, मार पीट करना या बेइज्जत करना आदि में धारा 3(1) के तहत कार्रवाई की जाएगी। धारा 3(2)(v) के तहत SC/ST समाज के किसी व्यक्ति पर हमला, या उसके जीवन को नुकसान पहुंचाना आदतें आते हैं । धारा 4 यदि कोई सरकारी कर्मचारी एससी एसटी एक्ट के किसी भी मामले में कार्यवाही के दौरान पक्षपात करें या कोताही बरतने तो एससी एसटी एक्ट की धारा 4 के तहत उसे अधिकारी पर कार्यवाही की जा सकती है।

एससी एसटी एक्ट के सभी मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होगी ऐसा इस कानून की धारा 14 कहती है। अगर एससी एसटी समाज का कोई व्यक्ति किसी मामले मे पीड़ित है तो इस कानून की धारा 15A उसे सुरक्षा देने का आदेश देती है।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST Act में कुछ प्रावधानों में ढील देने की कोशिश की थी जैसे FIR से पहले जांच जरूरी नहीं है। दोषी को अग्रिम ज़मानत की अनुमति देना। लेकिन जब देशभर में विरोध हुआ, तब संसद ने अध्यादेश लाकर फिर से इन प्रावधानों को सख्त कर दिया। और अभी एसटीएफ की एक्ट पहले की तरह ही काम करता है ।

Sc St act में सजा का प्रावधान

इस कानून में अपराध ग़ैर-जमानती (Non-Bailable) माने जाते हैं। Minimum सज़ा 6 महीने, Maximum सज़ा – आजीवन कारावास इन केसो में सजा अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है कि कितनी सज़ा दी जाएगी। अगर किसी व्यक्ति ने एससी एसटी समाज किसी व्यक्ति के साथ अत्याचार किया तो ज़मानत भी मुश्किल होती है।

अब तक के बडे केस और फैसले

1. रोहित वेमुला केस -2016

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र की आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। हालांकि इस केस में SC/ST Act लगा, लेकिन बाद में जांच में विवाद हुआ कि क्या रोहित SC वर्ग से थे या नहीं।

2.Una Incident -2016

गुजरात के ऊना में दलित समाज के लोगों को गौ रक्षा के नाम पर पीटा गया। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और बाद में SC/ST Act के तहत दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई

3. Bhima-Koregaon Case -2018

पुणे में दलितों की एक ऐतिहासिक विजय की वर्षगांठ के दौरान हिंसा हुई। इस घटना के बाद कई एक्टिविस्ट गिरफ्तार हुए। मामले में SC/ST Act लागू किया गया।

क्या इसका दुरुपयोग भी होता है ?

यह कानून जितना शक्तिशाली है, उतनी ही बार इसके दुरुपयोग की बातें भी उठती हैं।

SC/ST Act

सुप्रीम कोर्ट का बयान – 2018

बिना जांच के किसी पर SC/ST Act लगाना उसके जीवन और करियर को बर्बाद कर सकता है।
इसी के बाद कोर्ट ने FIR से पहले प्राथमिक जांच और अग्रिम ज़मानत की सिफारिश की।

लेकिन दलित संगठनों ने इस कानून को कमजोर करने की साजिश बताया और देशभर में आंदोलन हुए और मोदी सरकार ने उसी साल एक नया संशोधन विधेयक (Amendment Bill 2018) लाकर कोर्ट के फैसले को पलट दिया और कानून की सख्ती बरकरार रखी।

क्या यह कानून आज भी ज़रूरी है ?

आज समाज में एससी एसटी एक्ट होने के बाद भी समाज के शोषित और वंचित लोगों पर आए दिन कोई ना कोई अत्याचार की घटनाएं सामने आती रहती है। कहीं किसी दलित को घोड़ी पर नहीं बैठने दिया जाता। आज भी जाति के नाम पर भेदभाव किया जाता है। आज भी एक दलित प्रोफेसर को जमीन पर बैठने के लिए विवश किया जाता है। समाज में आज भी शोषण और वंचित लोगों का बहिष्कार तक किया जाता है और न जाने कितनी ही घटनाएं तो सामने भी नहीं आ पाती। क्या इन सब घटनाओं के बाद भी इस सवाल पर चर्चा की जानी चाहिए कि यह कानून आज भी जरूरी है या नहीं। शोषित और वंचित लोगों पर जब अत्याचार होता है तो एससी एसटी एक्ट ही उन्हें न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाता है ।

SC/ST Act भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 छुआछूत का अंत और अनुच्छेद 15(2) के मूल्यों को लागू करने का एक प्रभावशाली कानून है। हालांकि इसके दुरुपयोग को लेकर सतर्कता ज़रूरी है, लेकिन इस कानून की मौजूदगी समाज में जातीय समानता के लिए एक ज़रूरी कदम है।

SC/ST Act में सुधार की ज़रूरत है ?

सुधार की आवश्यकता हर कानून में होती है। अगर एससी एसटी एक्ट में सुधार की बात की जाए तो सबसे पहले चाहिए केस में निष्पक्षता के लिए कुछ प्रावधान किये जाए जिससे सही मायने में पीड़ित को सही न्याय मिल सके। क्योंकि कुछ मामलों में देखने को मिलता है कि पीड़ित को सही न्याय नहीं मिल पाता। एससी एसटी एक्ट के जितने भी मामले हैं उनकी सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए की जाए जिससे आरोपियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई की जा सके और उनको सजा मिल सके।

आज बहुत से संगठन और लोग एससी-एसटी एक्ट का विरोध करते हैं जो कि सरासर गलत है क्योंकि देश में एससी एसटी एक्ट के होते हुए भी उन लोगों पर बहुत से अत्याचार किए जाते हैं अगर एससी एसटी एक्ट के साथ छेड़खानी की गई या उसे हटा दिया गया तो तब क्या होगा क्या उनकी सुनवाई हो पाएगी। अगर हम भारत के लोग समाज में सभी के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे तो तभी हम आगे बढ़ सकते हैं अन्यथा चाहे कोई भी कानून आज जाए शायद ही समाज का भला कर पाएगा।

अगर आप चाहते हैं कि देश में हर नागरिक को बराबरी का अधिकार मिले, तो SC/ST Act को समझना और उसका सही उपयोग करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है विरोध नहीं।

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