SC/ST Act पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : अग्रिम जमानत पर लगी ये शर्त

sc/st Court news imageSC/ST सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम से जुड़े मामलों में अग्रिम जमानत को लेकर एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने साफ किया कि इस कानून के तहत अग्रिम जमानत तभी दी जा सकती है जब प्रथम दृष्टया ( Prima Facie यह सिद्ध हो जाए कि आरोपी पर लगाए गए आरोप वास्तविक नहीं हैं और अपराध साबित नहीं होता।

यह फैसला न केवल पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि उन लोगों के लिए भी राहत है जिन पर झूठे या मनगढ़ंत आरोप लगाए जाते हैं। आइए, इस फैसले को विस्तार से समझते हैं।

SC/ST Act क्या है और क्यों बना था ?

भारत में दलित और आदिवासी समाज पर लंबे समय से भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं होती रही हैं। इन अत्याचारों को रोकने और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए साल 1989 में SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम बनाया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य था जातीय भेदभाव और हिंसा पर रोक लगाना पीड़ितों को तुरंत न्याय दिलाना और दोषियों को सख्त सजा देना।

SC/ST Act की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें आरोपी को आसानी से जमानत नहीं मिलती। कानून की धारा 18 के तहत इस अधिनियम के मामलों में CrPC की धारा 438 अग्रिम जमानत लागू नहीं होती। यानी यदि किसी पर इस एक्ट के तहत मामला दर्ज होता है, तो उसे तुरंत गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत का विकल्प नहीं मिलता।

लेकिन वर्षों से इस कानून के दुरुपयोग के आरोप भी लगते रहे हैं। कई बार राजनीतिक, व्यक्तिगत या सामाजिक दुश्मनी निकालने के लिए झूठे आरोप लगाए गए। ऐसे मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर इस एक्ट की धाराओं की व्याख्या की है।

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सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला – अग्रिम जमानत कब मिलेगी ?

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया। उस आदेश में एक आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई थी, जबकि उस पर सार्वजनिक रूप से जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करके अपमानित करने का गंभीर आरोप था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा अग्रिम जमानत Anticipatory Bail सिर्फ उसी स्थिति में दी जाएगी जब प्रथम दृष्टया यह साबित हो कि अपराध का गठन नहीं होता यदि आरोप झूठे, मनगढ़ंत या सबूतों से रहित हैं, तो अदालत अग्रिम जमानत दे सकती है। लेकिन यदि FIR और गवाहों के आधार पर यह दिखता है कि जातीय अपमान या उत्पीड़न हुआ है, तो आरोपी अग्रिम जमानत का लाभ नहीं उठा सकता। यानी अब अदालतें हर केस की गहराई से जांच करेंगी और देखेंगी कि आरोप prima facie सही हैं या नहीं।

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फैसले का महत्व और असर

यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके असर को तीन बिंदुओं में समझा जा सकता है:

  • दलित और आदिवासी समाज की सुरक्षा बनी रहेगी यदि वास्तव में जातीय भेदभाव या अपमान हुआ है, तो आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी और कानून की कठोरता लागू होगी।
  • झूठे आरोपों पर रोक लगेगी अगर किसी ने दुश्मनी या बदले की भावना से झूठा केस दर्ज कराया है, तो आरोपी को अग्रिम जमानत मिलने का रास्ता खुला रहेगा। इससे कानून के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा।
  • न्यायिक विवेक को मजबूती मिलेगी अदालतों को यह अधिकार मिल गया है कि वे हर मामले की सामग्री देखकर तय करें कि अग्रिम जमानत दी जाए या नहीं। अब केवल आरोप लगने भर से किसी को जेल नहीं भेजा जाएगा।

SC/ST ACT- आखिर में कुछ

संतुलन का संदेश देता है यह फैसला, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्याय व्यवस्था में संतुलन का एक अच्छा उदाहरण है। यह फैसले एक तरफ उन लोगों को राहत देता है जिन पर झूठे आरोप लगते हैं, वहीं दूसरी तरफ यह सुनिश्चित करता है कि दलित और आदिवासी समाज को वास्तविक न्याय और सुरक्षा मिल सके।

अदालत ने साफ संदेश दिया है कि SC/ST Act की कठोरता वहीं लागू होगी जहां वाकई में उत्पीड़न हो। लेकिन गलत आरोपों से निर्दोष लोगों को बचाने के लिए अग्रिम जमानत का दरवाजा खुला रहेगा।

इस तरह यह फैसला न केवल न्यायपालिका की संवेदनशीलता को दर्शाता है बल्कि समाज में विश्वास और संतुलन बनाए रखने का भी कार्य करता है।

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