RSS तिरंगा विवाद : 52 सालो तक RSS ने तिरंगा क्यों नहीं अपनाया ? इसके पीछे की सच्चाई

RSS तिरंगा विवाद Controversy in HindiRSS तिरंगा विवादPhoto : Istock
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क्या आपने कभी सोचा है कि जब पूरा भारत 15 अगस्त और 26 जनवरी को गर्व से तिरंगा लहराता रहा, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS ने अपने नागपुर मुख्यालय पर 52 साल तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया ? यह सवाल लंबे समय से RSS तिरंगा विवाद का हिस्सा रहा है। आइए इस विवाद के पीछे की सच्चाई, विचारधारा और ऐतिहासिक घटनाओं को विस्तार से समझते हैं।

RSS और तिरंगे का विवादित रिश्ता

1947 में भारत आज़ाद हुआ। देशभर में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा आज़ादी का प्रतीक बना। लेकिन RSS ने इसे तुरंत स्वीकार नहीं किया। 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 को नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा जरूर फहराया गया, लेकिन उसके बाद 2001 तक संघ ने तिरंगे की जगह अपने भगवा ध्वज को ही प्राथमिकता दी यानी 52 साल तक RSS ने आधिकारिक रूप से तिरंगे को अपनाने से परहेज किया, जिसने इस संगठन को लगातार आलोचनाओं और सवालों के घेरे में रखा।

क्यों नहीं अपनाया RSS ने तिरंगा ?

संघ की विचारधारा के अनुसार भारत का असली प्रतीक भगवा ध्वज होना चाहिए था। RSS मानता था कि भगवा रंग त्याग, शौर्य और सनातन परंपरा का प्रतीक है। संघ के मुखपत्र Organiser में लिखा गया था कि तिरंगा लोगों में एकता और गर्व की भावना नहीं जगा पाएगा, असली प्रेरणा सिर्फ भगवा ध्वज से मिल सकती है।

RSS प्रमुख एम.एस. गोलवलकर ने अपनी पुस्तक Bunch of Thoughts में भी तिरंगे को जनता की नकल करार दिया था। यही वजह थी कि RSS ने आधे शतक तक तिरंगे को अपने आयोजनों से दूर रखा।

आज़ादी के बाद का दौर और सरकारी दबाव

1948 में गांधीजी की हत्या के बाद RSS पर प्रतिबंध लगा। इस प्रतिबंध को हटाने के लिए संघ को सरकार के सामने लिखित रूप से यह वादा करना पड़ा कि वह संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करेगा। फिर भी, व्यवहारिक रूप से RSS ने अपने मुख्यालय में तिरंगे की जगह भगवा ध्वज को ही प्राथमिकता दी।

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RSS तिरंगा विवाद पर बड़े नेताओं की राय

महात्मा गांधी- गांधीजी ने कहा था कि राष्ट्रीय ध्वज केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम और देशभक्ति का प्रतीक है। हालांकि उन्होंने सीधे RSS का नाम नहीं लिया, लेकिन उनके विचार साफ इशारा करते थे कि राष्ट्रीय ध्वज की अनदेखी देश की भावना के खिलाफ है।

जवाहरलाल नेहरू- नेहरू ने संसद में स्पष्ट कहा था कि तिरंगे का सम्मान हर भारतीय के लिए अनिवार्य है। उन्होंने चेताया कि कोई भी संगठन इसे नकार कर राष्ट्र से अलग नहीं हो सकता।

सरदार वल्लभभाई पटेल- पटेल ने RSS को चेतावनी दी थी कि अगर वे राष्ट्रीय ध्वज और संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे, तो उन्हें भारत के लोकतांत्रिक जीवन में जगह नहीं मिलेगी। यही कारण था कि 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए पटेल ने शर्त रखी थी कि आरएसएस को तिरंगे और संविधान सम्मान करना होगा।

इंदिरा गांधी- अपने कार्यकाल में इंदिरा गांधी ने कई बार RSS पर आरोप लगाया कि यह संगठन राष्ट्रीय प्रतीकों को महत्व नहीं देता। उन्होंने कहा था कि तिरंगे का अपमान किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

2001 का मोड़ – विवाद से बदलाव तक

जनवरी 2001 में नागपुर के स्मृति भवन में कुछ स्वयंसेवकों ने स्वतंत्र रूप से तिरंगा फहराया।
प्रशासन ने इसे नियमों के खिलाफ माना और विवाद खड़ा हो गया। मीडिया और राजनीतिक हलचल के बाद दबाव बढ़ा, और आखिरकार 2002 से RSS ने आधिकारिक रूप से 15 अगस्त और 26 जनवरी पर तिरंगा फहराने की परंपरा शुरू की।

आलोचना और राजनीति

कांग्रेस और वामपंथी दलों ने अक्सर RSS पर आरोप लगाया कि यह संगठन स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय नहीं रहा और 52 साल तक राष्ट्रीय ध्वज को न अपनाकर राष्ट्र का अपमान किया। राहुल गांधी ने 2017 में कहा था कि RSS ने 52 वर्षों तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया और उनके लिए भगवा ही सबसे महत्वपूर्ण

आज हालात बदल चुके हैं। RSS अब सार्वजनिक रूप से तिरंगे का सम्मान करता है। नागपुर मुख्यालय और देशभर के संघ शिविरों में स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण होता है। हालांकि इतिहासकार मानते हैं कि यह बदलाव राजनीतिक दबाव और आलोचना का नतीजा था, न कि संघ की मूल विचारधारा का हिस्सा।

क्यों ज़रूरी है यह चर्चा ?

तिरंगा केवल एक झंडा नहीं, बल्कि भारत की आज़ादी, बलिदान और लोकतंत्र की आत्मा है। जब कोई संगठन 52 साल तक इसे न अपनाए, तो स्वाभाविक रूप से सवाल उठते हैं। यह पूरा RSS तिरंगा विवाद हमें याद दिलाता है कि राष्ट्रीय प्रतीकों का महत्व विचारधाराओं से ऊपर है। समय के साथ RSS ने भी अपनी नीति बदली और आज तिरंगे को सम्मान देने लगा।

RSS और तिरंगे का विवाद भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास का एक अनोखा अध्याय है। 52 साल तक राष्ट्रीय ध्वज न फहराना सिर्फ संगठन का निर्णय नहीं था, बल्कि उसकी वैचारिक पहचान का हिस्सा था। आज भले ही RSS खुले तौर पर तिरंगे को सम्मान देता है, लेकिन यह तथ्य हमेशा हमें याद दिलाएगा कि राष्ट्रीय ध्वज केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक है।

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