Ravana : जब भी हम रावण का नाम सुनते हैं, हमारे मन में एक भयानक राक्षस की छवि उभरती है जिसने माता सीता का हरण किया, भगवान राम से युद्ध किया और आखिर में मारा गया। लेकिन क्या रावण सच में केवल एक खलनायक था ?
इस लेख में हम रावण के जन्म, उसके ज्ञान, तपस्या और एक अनसुनी सच्ची कहानी के जरिए जानेंगे उस रहस्य को, जो उसे केवल राक्षस नहीं बल्कि इतिहास का एक जटिल और रहस्यमयी पात्र बनाता है।
रावण का रहस्यमई जन्म :
रावण का जन्म एक विचित्र और शक्तिशाली संयोग का परिणाम था। उसके पिता महर्षि विश्रवा ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य के वंशज थे – यानी रावण एक ब्राह्मण कुल में जन्मा। वहीं उसकी माता कैकसी राक्षस कुल राक्षस राज सुमाली की बेटी थी। इस प्रकार रावण में एक ओर जहां ब्रह्मणों का अंश था, वहीं दूसरी ओर राक्षसों का बल और क्रोध।
कैकसी ने अपने गर्भ से तीन पुत्रों को जन्म दिया – रावण, कुंभकर्ण और विभीषण, और एक पुत्री – जिसका नाम था शूर्पणखा। इन चारों की प्रकृति अलग-अलग थी, लेकिन रावण सबसे ज्यादा तेजस्वी और शक्तिशाली निकला।
बचपन की एक सनसनीखेज़ घटना :
कहा जाता है कि जब रावण लगभग 7 वर्ष का था, तब गांव के पास एक वृद्ध साधु का निधन हो गया। उस समय बच्चे डर के मारे शव के पास नहीं जा रहे थे। लेकिन रावण ने हिम्मत दिखाई और शव के पास जाकर बोल पड़ा..
अगर मृत्यु का देवता यम इस रूह को लेने आएगा, तो मैं उसे अपनी तलवार से काट दूंगा !
यह घटना कोई कल्पना नहीं, बल्कि लंकाविजय नाम के एक तमिल ग्रंथ में वर्णित है। यह वही क्षण था जब उसके पिता ने उसे पहली बार समझाया तू अब साधारण नहीं रहा, तुझमें देवताओं को चुनौती देने की जिद है।
Ravana : एक महान योद्धा या ज्ञान का महासागर ?
रावण बचपन से ही अत्यंत तेजस्वी था। उसने चारों वेद, छहों शास्त्र, आयुर्वेद, तंत्र, संगीत और ज्योतिष का गहन अध्ययन किया। कहा जाता है कि रावण को वीणा वादन में अकल्पनीय महारत हासिल थी।
उसकी लिखी हुई.. रावण संहिता आज भी ज्योतिषियों के लिए अमूल्य ग्रंथ मानी जाती है। उसने अपने ज्ञान और तपस्या के बल पर न सिर्फ़ ब्रह्मा बल्कि शिव को भी प्रसन्न किया।
रावण कैसे बना अजेय…
कहते हैं, रावण ने हिमालय में बैठकर अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की, उसने अपनी भुजाओं को काटकर शिव को अर्पित किया, अपना सिर काटकर ब्रह्मा को चढ़ाया। हर बार जब वह अपना सिर काटता, एक नया सिर उग आता। यह प्रक्रिया 10 बार हुई, जिससे उसे दशानन कहा गया।
रावण को ब्रह्मा का वरदान…
ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर रावण को कई बड़े वरदान दिए…
पहला कि तुम कभी भी देवताओं से न हारोगे ना मरोगे।
दूसरा यक्ष, गंधर्व, दानव, नाग – कोई तुम्हें नहीं मार सकता
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण अथाह बल, बुद्धि और पुष्पक विमानब्रह्मा ने रावण को वरदान मे दे दिया।
आगे चलकर यही वरदान रावण के अहंकार और विनाश का कारण भी बने।

त्रिकोणमली के कोणेश्वरम मंदिर में रावण की प्रतिमा. फोटो विकिपीडिया..
रावण की शिव भक्ति …
रावण का एक दूसरा रूप उसका शिव भक्ति में समर्पण था। एक बार वह कैलाश पर्वत उठाकर शिव को लंका लाना चाहता था, ये देखते हुए शिव ने अपने अंगूठे से कैलाश पर्वत दबा दिया जिससे रावण नीचे दब गया।
रावण ने वहीं शिव तांडव स्तोत्र की रचना की, जिसे सुनकर शिव प्रसन्न हो गए और उसे छोड़ दिया।
क्या रावण का जन्म एक श्राप था ?
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, रावण और कुंभकर्ण कोई साधारण राक्षस नहीं थे। वे जय और विजय नाम के विष्णु के द्वारपाल थे, जिन्हें ऋषियों के श्राप से राक्षस रूप में तीन जन्म लेने पड़े, हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप, रावण और कुंभकर्ण, तीसरा जन्म शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में हुआ।
इन तीनों जन्मों में वे विष्णु के अवतारों वराह, राम, कृष्ण के हाथों मारे गए और आखिर में बैकुंठ लौट गए।
रावण का अंहकार…
रावण जितना ज्ञानी था, उतना ही अहंकारी भी। वह शिव भक्त था, लेकिन स्त्री का अपहरण कर बैठा। वह वेदों का ज्ञाता था, लेकिन नीति और मर्यादा का उल्लंघन करता रहा। उसने माता सीता का हरण किया, जिससे उसका अंत निश्चित हो गया। रावण का अंत केवल भगवान राम के हाथों ही हो सकता था – क्योंकि वही मानव रूप में जन्मे विष्णु थे।
क्या रावण बुरा था ?
यह सवाल सदियों से उठता आया है। सच्चाई यह है कि रावण केवल बुरा नहीं था। वह एक जटिल व्यक्ति था यानी ज्ञान और अधर्म का समान मिश्रण। रावण ने अपने जीवन में कई बड़ी गलतियां की जो घातक साबित हुई, लेकिन साथ ही रावण के ज्ञान और प्रतिभा को भी नहीं नकारा जा सकता वह एक महान ज्ञानी था। युद्ध भूमि में जब आखिरी सांस चल रही थी तो राम ने रावण के ज्ञान को देखते हुए लक्ष्मण को रावण के पास भेजा था की जाओ रावण जैसे महान विद्वान से कुछ ज्ञान ले लो। रावण के ज्ञान को नहीं नकारा जा सकता वह एक विद्वान और महान शिव भक्त था।
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रावण से हमें क्या सीख मिलती है ?
अगर कोई रावण के जीवन से कुछ सीखना चाहे तो सबसे पहली सिख यह है कि जीवन में चाहे जिस पद पर पहुंच जाओ या कुछ भी हासिल कर लो कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।
दूसरी और जरूरी है कि अपने ज्ञान और शक्तियों के बाद भी जीवन में हमेशा विनम्र बने रहना कल्याणकारी साबित होगा। अन्यथा आपका ज्ञान और शक्तियां भी बेकार है अगर आपके अंदर दयालुता और विनम्रता नहीं है।
तीसरा – जीवन में सिर्फ प्रभु भक्ति ही काफी नहीं है बल्कि भक्ति और शक्ति के साथ-साथ जीवन में मर्यादाओं और नीतियों का पालन जरूर करना चाहिए। यह आपके जीवन को कल्याण की ओर लेकर जाएगा।
DSR Inspiration की विशेष टिप्पणी :
रावण का जीवन महज एक राक्षस की कथा नहीं, बल्कि यह एक चेतावनी है उन सभी के लिए, जो ज्ञान और शक्ति को लक्ष्य बनाकर मर्यादा भूल जाते हैं।
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