Osho Rajneesh Controversy- 1980 के दशक में अमेरिका के ओरेगन राज्य में बसा रजनीश पुरम कभी सपनों का शहर माना जाता था। ध्यान, स्वतंत्रता और प्रेम का प्रतीक। लेकिन कुछ ही वर्षों में यह आध्यात्मिक नगरी विवादों, अपराधों और राजनीतिक संघर्षों का केंद्र बन गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि ओशो को अपने सपनो का शहर छोड़कर अमेरिका से जाना पड़ा ?
Osho Rajneesh Controversy -भारत से अमेरिका जाना
1970 के दशक के अंत तक ओशो का पुणे आश्रम दुनियाभर में चर्चित हो चुका था। हजारों अनुयायी उनसे जुड़ रहे थे। लेकिन भारत में राजनीतिक दबाव, मीडिया आलोचना और स्वास्थ्य कारणों के चलते ओशो ने विदेश जाने का निर्णय लिया।
मई 1981 में वह मेडिकल वीजा पर अमेरिका पहुँचे। जल्द ही उनके अनुयायियों ने ओरेगन के वास्को काउंटी में 64000 एकड़ का बिग मडडी रांच खरीदा और यहीं से जन्म हुआ रजनीश पुरम शहर का।

फोटो – रजनीश पुरम 1983 (विकिपीडिया )
रजनीशपुरम सपनों का शहर
रजनीश पुरम को कुछ ही सालों में एक आधुनिक आत्मनिर्भर नगरी के रूप में विकसित किया गया। यहां सड़कें, एयरस्ट्रिप, अस्पताल, स्कूल, दुकानें, खेती, और बस सर्विस सब कुछ बनाया गया। उद्देश्य था एक ऐसा समाज बनाना जहां लोग ध्यान, प्रेम और सामूहिक जीवन में विकसित हो सकें। डायनेमिक मेडिटेशन और ओशो की अनूठी वाणी से प्रभावित लोग दुनिया के कोने-कोने से यहां आने लगे।
अमेरिका सरकार से टकराव की शुरुआत
अमेरिका में रजनीश पुरम को कम्यून के नाम से जानते थे जैसे-जैसे कम्यून अपनी जड़ें गहरी करता गया, वहां के अमेरिकी लोगों और सरकार से टकराव भी बढ़ने लगे। आचार्य रजनीश के भाई शैलेंद्र सरस्वती ने अपने एक इंटरव्यू में बताया की अमेरिका से टकराव के सबसे बड़े कई कारण थे । वहां ओशो की प्रसिद्धि इतनी बढ़ गई थी कि वहां की मीडिया प्रतिदिन ओशो पर रिपोर्टिंग करने लगी थी और इंटरनेशनल मीडिया भी ओशो को दिखाने लगी थी जिसमें देश दुनिया की मीडिया ओशो को दुनिया भर में दिखाती थी और लोग उनको सुनते थे। दुनिया के सुपर वीआईपी लोग रजनीश पुरम में आकर बसने लगे थे। एक समय यह था कि अमेरिका की मीडिया चैनलों पर अमेरिका के राष्ट्रपति से ज्यादा ओशो की बात करने लगी थी। लगभग हर हफ्ते या 15 दिनों में इंटरनेशनल प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी जिसमे ओशो बाइबल पर अपने कटाक्ष और तार्किक भाव में बोलते थे। और उन्होंने वहां के पादरियों को खुला चैलेंज किया था की आओ और मुझसे बाइबल पर बहस करो, इसी के साथ वहां की सरकार समझने लगी थी कि यह लोग कम्युनिस्ट हैं और रूस की तरफ से इनको फंडिंग की जा रही है और आचार्य रजनीश पर भूमि उपयोग कानून और राजनीति में विभाजन जैसे आरोप लगाकर अमेरिका की सरकार ने कार्रवाई शुरू कर दी। 1985 में अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राजनीशपुरम ने चर्च-स्टेट विभाजन का उल्लंघन किया है। यह शहर कानूनी रूप से मान्य नहीं था।
अक्टूबर 1985 में ओशो रजनीश को नॉर्थ कैरोलिना में गिरफ्तार किया गया। उन पर इमिग्रेशन फ्रॉड वीज़ा में धोखाधड़ी के आरोप लगे आचार्य शैलेंद्र सरस्वती अपने इंटरव्यू में आगे बताते हैं कि ओशो को वहां की सरकार न्यायालय में ना ले जाकर 12 दिनो तक इधर से उधर घूमाती रही और उनका यह भी संदेह है कि शायद इसी बीच उनके साथ धीमा जहर देने या रेडिएशन अटैक जैसी साजिश रची गई जिसका बाद में ओशो को नुकसान भुगतना पड़ा। और आखिर में आचार्य रजनीश ने अमेरिका की सरकार के साथ समझौता करके रजनीश पुरम हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया। ओशो का वीजा रद्द कर दिया गया और दुनिया के लगभग 21 देशो ने ओशो को बैन कर दिया।
Osho Rajneesh Controversy-राजनीशपुरम छोड़ने के बाद
MBBS डॉक्टर आचार्य रजनीश के छोटे भाई शैलेंद्र सरस्वती अपने इंटरव्यू में आगे बताते हैं कि अमेरिका से आने के बाद लगभग एक महीना ओशो रजनीश हिमाचल प्रदेश भारत में रहे । उस समय भारत सरकार भी अमेरिका के दबाव में थी और ओशो की कोई मदद नहीं की क्योंकि वह समय ही ऐसा था कोई चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। इसके बाद ओशो अगले 6 महीने दुनिया के अलग-अलग लगभग 21 देशो में घूमे लेकिन अमेरिका की दादागिरी के कारण ओशो किसी भी देश में अपनी जड़े नहीं जमा पाए। शैलेंद्र सरस्वती जी उस समय का एक किस्सा सुनाते हुए आगे बताते हैं दुनिया के एक देश के राष्ट्रपति जो ओशो रजनीश के शिष्य थे उन्होंने ओशो को अपने यहां आमंत्रित किया और अपने देश में रहने के लिए कहा। उस देश के राष्ट्रपति का मानना था कि अगर ओशो उस देश में रहेंगे तो पर्यटकों के आने से वहां की सरकार को आर्थिक लाभ भी मिलेगा। लेकिन चार दिनों के बाद ही अमेरिका ने उस देश के राष्ट्रपति पर दबाव बनाकर ओशो को देश से निकाल देने को कहा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो अमेरिकी सरकार उन्हें भविष्य में कभी वित्तीय सहायता नहीं करेगी और जितना भी लोन उस देश की सरकार ने लिया है वह उन्हें अभी वापस करना होगा।
1984 का बायोटेरर हमला
राजनीशपुरम के इतिहास का सबसे काला पन्ना 1984 का साल्मोनेला अटैक, कम्यून के कुछ नेताओं ने वहां के रेस्तरां के सलाद या वॉटर टैंक में ज़हर मिलाया, जिससे लगभग 750 लोग बीमार पड़े। इसका उद्देश्य था चुनाव में विरोधियों को वोट देने से रोकना। यह अमेरिका के इतिहास का पहला और सबसे बड़ा बायोटेरर हमला माना जाता है।
मां आनंद शीला का उदय और जेल
पुणे में ओशो रजनीश का आश्रम प्रसिद्ध हो चुका था। इसी बीच मां आनंद शीला अपने पति के साथ आचार्य रजनीश के आश्रम में आई और वही उनकी मुलाकात आचार्य रजनीश से हुई। कहा जाता है ओशो को अमेरिका ले जाने में शीला मां की अहम भूमिका है। शीला मां ओशो की निजी सचिव बनी जिसके बाद मां आनंद शीला का प्रभाव कम्यून में तेजी से बढ़ा। वह फैसले लेने, फंड संभालने और लगभग पूरा मैनेजमेंट चलाने की प्रमुख बनीं। लेकिन शीला पर कई गंभीर आरोप लगे शैलेंद्र सरस्वती बताते हैं कि आश्रम में वायरटैपिंग की जा रही थी। ओशो और अन्य लोगों के कमरो की दीवारों पर माइक्रोफोन लगाए गए थे। वही दूसरा सबसे बड़ा आरोप लगाते हुए शैलेंद्र सरस्वती ने अपने इंटरव्यू में बताया कि जब लगभग 3 साल 6 माह तक ओशो मौन व्रत धारण किए हुए थे तो इसी बीच शीला मां समझने लगी थी कि वही रजनीश पुरम की सर्वेसर्वा है यानी एक तरह से शीला मां तानाशाही रवैया अपनाने लगी थी और अपनी मनमर्जी करने लगी थी। क्योंकि ओशो तो मौन थे ,बिना ओशो की मर्जी से शीला ने एक किताब छपवाई जिसका नाम था रजनीश धर्म इंग्लिश में यह किताब Rajneeshsiam नाम से छपी ,उस किताब में रजनीश के आश्रम के बारे में संन्यासियों को गलत जानकारियां छापकर दी गई और जिन चीजों के खिलाफ ओशो रजनीश थे उसे धर्म बनाकर दुनिया के सामने परोसा गया । जब ओशो रजनीश ने अपना मौन धारण तोड़ा तो सब सन्न रह गए क्योंकि किसी को उम्मीद ही नहीं थी कि ओशो कभी बोलेंगे और उसके बाद शीला मां के सभी काले कारनामे सामने आते चले गए। इसके बाद ओशो ने सीबीआई से संपर्क करके जांच कराई और शीला मां को 20 साल की सजा मिली बाद मे वहां की सरकार ने शीला मां को 36 महीने में रिहा कर दिया।
राजनीशपुरम के कुछ अनसुने किस्से
ओशो रजनीश के पास लगभग 97 रोल्स-रॉयस गाड़ी थी, आज तक इतनी रोल्स-रॉयस कारें दुनिया के किसी वीआईपी के पास नहीं है। ओशो हर दिन रोल्स-रॉयस कार में बैठकर कम्यून से गुजरते थे, अनुयायी नाचते-गाते उनका स्वागत करते। कम्यून रजनीश पुरम को बोला जाता था कम्यून का मतलब होता है एक समुदाय स्थानीय लोगों ने राजनीशपुरम को कम्युन का नाम दिया हुआ था।

ओशो रोल्स-रॉयस कलेक्शन फोटो – Prem-rawat-bio-org
राजनीशपुरम में आश्रम में वायर टैपिंग की जाती थी यहां तक की ओशो के कमरे में भी वह वायर टैपिंग की गई। जिसका बाद में खुलासा हुआ और शीला मां का नाम सामने आया कि उसने ही ओशो और अन्य लोगों के कमरे में माइक्रोफोन लगवाए थे जिससे उनकी बातों को सुना जा सके।
कुछ पूर्व अनुयायियों ने बाद में बच्चों के शोषण जैसे गंभीर आरोप भी लगाए जो डॉक्यूमेंटरी Children of the Cult में सामने आए।
एक अद्भुत किस्सा जो आचार्य ओशो रजनीश के भाई शैलेंद्र सरस्वती अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि ओशो एक रात अपने कमरे में सोए हुए थे तो अचानक उनके कमरे पर आहत हुई उन्होंने देखा कि उनके गेट पर तो कोई नहीं है और गेट भी बंद है लेकिन गेट के अंदर एक प्रकाशमय आभा प्रवेश कर रही है ओशो बताते हैं कि नजदीक आने पर पता चला कि यह आभा भगवान बुद्ध की है भगवान बुद्ध ओशो के शरीर में मैत्री रूप में प्रवेश हुए ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने कहा था कि मैं ढाई हजार साल बाद एक बार फिर मैत्री रूप में आऊंगा और आचार्य रजनीश यानी ओशो का कहना है कि भगवान बुद्ध मैत्री रूप में आकर मेरे शरीर में समा गए और लगभग 15 दिन तक मेरे शरीर में रहे।
रजनीश पुरम पतन की सच्चाई
ऐसा अक्सर देखा जाता है कि अगर किसी देश में बाहर से आकर कोई व्यक्ति अपना वर्चस्व बना ले एक रजनीश पुरम जैसा शहर जो अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन से भी डेढ़ गुना ज्यादा बड़ा था और उनके अनुयाई वहां के साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि सुपर वीआईपी आदमी उनको फॉलो करते थे उनके शिष्य थे। इसी बात को देखते हुए अमेरिका के नागरिकों और सरकार को चिंता होने लगी। ओशो ने अमेरिका में रजनीश नाम का दूसरा शहर भी बसा लिया था और फिर ओशो रजनीश का क्रिश्चियनिटी पर अपने जबरदस्त अकाट्य कटाक्षो का हमला और वहां के पादरियों को खुली चुनौती देना जिससे वहां की सरकार और नागरिकों को लगने लगा था की एक अकेले व्यक्ति ने हमारे 2000 साल पुराने धर्म को चुनौती दी है। सरकार को लगने लगा था कि यह व्यक्ति हमारे लिए घातक साबित होगा आखिरकार ओशो को अमेरिका छोड़ना पड़ा और उनका राजनीशपुरम कम्यून का सपना सिर्फ चार साल में बिखर गया।
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