Indian Constitution क्या भारत का संविधान वाकई में खतरे में है ?

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Indian Constitution राजनीति, बदलाव और बंटते समाज के बीच एक सवाल संविधान सिर्फ किताब नहीं, विचार है

सोशल मीडिया पर आए दिन एक ही वाक्य बार-बार दोहराया जाता है संविधान खतरे में है ! कभी यह नारा किसी राजनीतिक दल की रैली में गूंजता है, तो कभी किसी आंदोलन की दीवार पर लिखा होता है।पर सवाल ये है कि क्या ये वाकई में हकीकत है, या सिर्फ एक राजनीतिक शोर ?

इस लेख में हम न सिर्फ इस नारे के पीछे की सच्चाई जानेंगे, बल्कि यह भी समझेंगे कि कैसे राजनीति संवैधानिक बदलाव और जनता के बीच बढ़ती दूरी संविधान को लेकर चिंता का कारण बन रही है।

Indian Constitution जोड़े रखने वाला धागा..

26 जनवरी 1950 को जब भारत गणराज्य बना, तब संविधान को देश के हर नागरिक की आज़ादी समानता और न्याय की गारंटी माना गया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे…सामाजिक क्रांति का दस्तावेज़ कहा था।

संविधान खतरे में है का शोर ?

पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाओं ने संविधान की मजबूती को लेकर सवाल उठाए हैं इनमें कुछ बड़े मुद्दे सामने है जैसे CAA नागरिकता संशोधन अधिनियम और NRC जैसे कदम,अनुच्छेद 370 का हटाया जाना, लोकसभा में बिना बहस के बिल पास होना और न्यायपालिका, मीडिया और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर संदेह।

इन घटनाओं ने न केवल विपक्ष को बोलने का मौका दिया, बल्कि आम जनता को भी सोचने पर मजबूर कर दिया क्या वाकई संविधान खतरे में है ?

संविधान की दुहाई या राजनीतिक हथियार ?

अब बात करते हैं राजनीति की। आज का दौर ऐसा हो गया है जहां हर राजनीतिक दल संविधान की बात करता है,
लेकिन असल में उसके सिद्धांतों पर अमल कम ही करता है।

अगर देखा जाए कि पक्ष क्या करता है ? तो सरकारें बार-बार यह कहती हैं कि वे संविधान का सम्मान करती हैं।लेकिन देखा गया है कि सत्ता में आने के बाद संस्थानों को कमजोर करना जवाबदेही से बचना, और संसदीय प्रक्रिया को छोटा करना आम बात हो गई है।

संविधान की राजनीति में विपक्ष का रोल …

विपक्षी दल संविधान को बचाने की बात करते हैं, लेकिन कई बार उनकी राजनीति भी जनता को भ्रमित करने वाली होती है।संविधान के नाम पर अब चुनाव लड़े जाते हैं, और मुद्दे गायब हो जाते हैं।

समाज में बंटवारा : जनता आपस में क्यों लड़ रही है ?

राजनीति का सबसे बड़ा असर सामाजिक ताने-बाने पर पड़ता है। आज हम देख रहे हैं कि धर्म जाति और भाषा के नाम पर जनता को बांटा जा रहा है सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट्स, ट्रोलिंग, और झूठे नैरेटिव् हावी हैं और संविधान के नाम पर अब लोग बहस नहीं, लड़ाई करते हैं

क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ ?

संविधान की रक्षा केवल किताबों में नही बल्कि आपसी भाईचारे, बातचीत आपसी सम्बन्ध और लोकतांत्रिक मूल्यों के पालन में है। आखिर में संविधान विशेषज्ञों का निष्कर्ष यही है कि संविधान को बदला जाना उतना भी सरल रही है जितना लोग सोच रहे हैं । संविधान निर्माताओं ने कोई कागज नहीं बनाया है की कोई भी आकर बदल देगा।

कैसे बदला जा सकता है संविधान…

संविधान में बदलाव संभव है, लेकिन एक तय प्रक्रिया से : संसद में दो-तिहाई बहुमत जरूर है,कई बार राज्यों की सहमति से कुछ बदलाव हो सकते हैं।राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी है। अब तक 100+ संशोधन हो चुके हैं। कुछ अच्छे थे, कुछ विवादित।

लेकिन खतरा तब होता है जब बिना बहस के कानून बनाए जाते हैं,न्यायपालिका पर दबाव डाला जाता है मीडिया को पक्षपाती बना दिया जाता है और नागरिकों को आपस में लड़ाया जाता है

क्या संविधान की आत्मा कमजोर हो रही है ?

जब सरकारें सिर्फ चुनाव जीतने के लिए कानूनों में बदलाव करती हैं, जब धर्म और जाति को वोट बैंक बना दिया जाता है,
तो संविधान की आत्मा को चोट पहुंचती है। धारा वही रहती है, लेकिन भावना मर जाती है।

क्या संविधान की रक्षा अब जनता को करनी होगी ?

बिलकुल! संविधान कागज का टुकड़ा नहीं है यह एक लोकतांत्रिक वादा है, जिसे हर नागरिक को निभाना है।
नागरिक संविधान की रक्षा कैसे कर सकते है आईए जानते हैं

1. सचेत नागरिक बनें अफवाहों और नफ़रत से दूर रहें
2. लोकतंत्र में भागीदारी करें वोट दें, सवाल पूछें
3‌. संविधान पढ़ें और सिखाएं केवल नारे नहीं, ज्ञान फैलाएं
4. राजनीति से प्रभावित न हों, बल्कि उसे जिम्मेदार बनाएं

संविधान खतरे में नहीं, पर चुनौती में है

भारत का संविधान तब तक सुरक्षित है जब तक उसकी रक्षा करने वाला समाज जागरूक और एकजुट है। राजनीति बदलेगी, सरकारें आएंगी-जाएंगी, लेकिन अगर जनता आपस में लड़ती रही, तो संविधान का सपना अधूरा रह जाएगा।

अब समय है कि हम लड़ाई से नहीं, संवाद और समझदारी से संविधान को बचाएं। इस विषय पर आपके क्या विचार है आप नीचे कमेंट सेक्शन में लिख सकते हैं

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