Ashok Samrat Biography –
भारत का इतिहास अनेक वीरों और धर्मपरायण शासकों से भरा हुआ है, लेकिन सम्राट अशोक महान की गाथा कुछ अलग है। मौर्य राजवंश के तीसरे सम्राट अशोक केवल एक विजेता नहीं थे, बल्कि आत्मबोध, करुणा और शांति के प्रतीक बनकर उभरे। उन्होंने कलिंग युद्ध के दिल दहला देने वाले दृश्य के बाद अपना जीवन ही बदल दिया और बौद्ध धर्म के महान प्रचारक बने।
इस लेख में आपको सम्राट अशोक की पूरी जीवन गाथा, कलिंग युद्ध की पूरी कहानी, उनका बौद्ध धर्म के प्रति झुकाव क्यों हुआ, उनका राजपरिवार एवं बच्चों का योगदान और उनके जीवन से जुड़ी अनोखी जानकारी पढ़ने को मिलेंगी।
Samrat Ashok का व्यक्तिगत जीवन :
सम्राट अशोक महान का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व को पाटलिपुत्र (आज का पटना) बिहार में हुआ था। उनका पूरा नाम जो कि उनके द्वारा लिखे शिलालेखों के अनुसार हैं देवानांप्रिय अशोक , प्रियदर्शी अशोक था यानी देवों के प्रिय अशोक , अशोक सम्राट के दादा का नाम चंद्रगुप्त मौर्य था और पिता बिंदुसार थे , उनकी माता सुभद्रांगी थी,
अशोक सम्राट की पांच पत्नियां थीं , सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे। उनका राज्याभिषेक 268 ईसा पूर्व हुआ था, इतिहासकारों का कहना है की राजगद्दी के लिए अशोक और उनके भाइयों के बीच काफी संघर्ष रहा और बाद में जीतकर अशोक ने राजगद्दी हासिल की। सम्राट अशोक का शासन काल 269 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा।
अशोक बचपन से ही चतुर, प्रतिभाशाली और बहादुर थे। अशोक सम्राट बचपन से ही कठोर निर्णय लेते थे। उनकी शिक्षा तक्षशिला मे हुई थी जो उस समय का प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था। राजमहल में उनके साथ अधिक भेदभाव होने के बावजूद, उन्होंने अपनी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता से राजगद्दी प्राप्त की।
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राजगद्दी पर अधिकार :
उनके पिता बिंदुसार की मृत्यु के बाद अशोक और उनके सैनिकों के बीच सत्ता संघर्ष हुआ और अशोक सम्राट ने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व से राजगद्दी हासिल की।
सम्राट अशोक का शासन और विस्तार नीति –
सम्राट अशोक ने मौर्य साम्राज्य को आज का पाकिस्तान अफ़गानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, बांग्लादेश और संपूर्ण भारत तक फैलाया । उसे समय से आज तक इतने बड़े साम्राज्य पर किसी राजा ने राज नहीं किया है इसकी विशालता सबसे बड़ी रही है। इसीलिए सम्राट अशोक को ‘”सम्राटों का सम्राट,,, चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान कहा जाता है। यह गौरव पूरे भारत में केवल सम्राट अशोक को प्राप्त हुआ है। उनका प्रशासन और अनुशासन न्याय पर आधारित था। उन्होंने जनता की भलाई के लिए कई सामाजिक और आर्थिक सुधार लागू किये।
कलिंग युद्ध : सम्राट अशोक के जीवन का निर्णायक मोड़ –
कलिंग युद्ध कब हुआ और इसके कारण :
कलिंग युद्ध (वर्तमान ओडिशा) 261 ईसा पूर्व हुआ था। कलिंग पर पद्मनाभन का शासन था । कलिंग एक समुद्री मार्ग व्यापार समृद्ध राज्य था, युद्ध से पहले सम्राट अशोक ने वहां के राजा को मौर्य साम्राज्य में मिलने का मौका दिया था। लेकिन जब उनकी तरफ से इनकार कर दिया गया तो सम्राट अशोक ने अपनी विशाल सेना के साथ कलिंग पर आक्रमण कर दिया
सम्राट अशोक की सेना में लड़ाकू हाथी, घोड़े और लाखों की संख्या में पैदल सैनिक थे और एक भयंकर युद्ध हुआ, सम्राट अशोक की सेनानी कलिंग की सेवा का सफाया कर दिया, आखिर में मौर्य साम्राज्य की जीत हुई।
कलिंग युद्ध में विनाश :
कलिंग युद्ध इतना भयानक था कि वहां बहने वाली एक नदी लगभग खून से बहने लगी थी।
इस युद्ध लगभग दोनों तरफ से 2 लाख लोग मारें गये, और लाखों लोग घायल हुए, और धन के नुकसान का कोई अंदाजा ही नहीं है । ख़ून से लतपथ लाशों के ढेर, रोते बिलखते घायल सैनिक, और चारों तरफ के हाहाकार मे सम्राट अशोक का हृदय बदल गया। इसके बाद सम्राट अशोक का झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ बढ़ गया। इतिहासकारों का मानना है की एक बौद्ध भिक्षु उनके दरबार में आए और उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
बौद्ध धर्म और सम्राट अशोक :
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने नरसंहार करना छोड़ अहिंसा और धम्म का मार्ग अपनाया। वे बौद्ध भिक्षु उपासक निग्रोध से दीक्षा लेकर बौद्धमय हो गये।
बौद्ध धम्म प्रचार के लिए किए गए कार्य :
अशोक सम्राट ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद पूरे एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार कराया लेकिन उनकी नीतियों में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने अपनी प्रजा को बौद्ध धर्म जबरदस्ती अपनाने का आदेश दिया हो।
सम्राट अशोक ने 84000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण करवाया। उन्होंने आदेश दिया कि यह बौद्ध स्तूप उन शहरों में बनाए गए जहां पर 1 लाख से ज्यादा संख्या में लोग रहते हैं।
सम्राट अशोक ने अपनी धम्म नीति में ,शांति और अहिंसा को बढ़ावा दिया।
> धम्ममातृ नियुक्त टीमें गये
.>पूरे देश में बौद्ध विहारों का निर्माण कराया जाए।
>अहिंसा, सत्य,क्षमायेति, और सामुदायिक लाभ का प्रचार किया।
>श्रीलंका, अफगानिस्तान, नेपाल, जर्मनी और पूरे एशिया तक बौद्ध धर्म का प्रचार कराया।
>अशोक स्तम्भ और सिंहश्रृंग जो आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, उनका निर्माण कराया।
Samrat Ashok का राजपरिवार और उनका योगदान :
सम्राट अशोक की 5 रानियां –
- देवी – उज्जैन की राजकुमारी थी।
- असंधमित्रा –
- करूवाकी –
- पद्मावती –
- तिष्यराक्ष-
सम्राट अशोक के पुत्र –
- महेंद्र – बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा गया , वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया और वहां के राजा तिस्सा को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
- कुणाल-
- तिवरा-
- तालुका –
चक्रवर्ती सम्राट अशोक की पुत्री –
1. संघमित्रा – अपने भाई महेंद्र के साथ बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका गई और बौद्ध धर्म का प्रचार किया , और वहां महाबोधि वृक्ष की एक टहनी को पेड़ के रूप में रोपा , यह पेड़ आज भी वहां महाबोधि वृक्ष के नाम से प्रसिद्ध है और उसकी पूजा की जाती है।
2. चारुमति –
अशोक के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक किस्से –
1. युद्ध क्षेत्र में सहायक : एक महिला युद्ध के बाद अपने परिवार को खो गई थी और वास्तविकता में कह रही थी, “मेरे जीवन में अब कुछ नहीं बचा।” अशोक ने आश्चर्यचकित होकर कहा:
“अब मेरी तलवारें नहीं, मेरी करुणा मेरी शक्तियाँ होंगी।”
2. पेजपालक राजा : एक बार अशोक ने एक बीमार वृद्ध महिला की स्वयं सेवा की और उसके लिए आवास गृह बनाया। उन्होंने अपने मत में कहा – “राजा का धर्म केवल शासन करना नहीं, सेवा करना भी है।”
मृत्यु और विरासत :-
सम्राट अशोक का निधन लगभग 232 ई.पू. में हुआ। उन्होंने अपने अंतिम वर्ष को आत्मिक एवं सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनके जाने के बाद मौर्य राजवंश का धीरे-धीरे पतन हो गया, लेकिन सम्राट अशोक के विचार और उनकी विरासत आज भी हमारे बीच जिंदा है अशोक स्तंभ के रूप में, शिला लेखो और उनकी अन्य धरोहर के रूप में।
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आखिर में कुछ :
इतिहासकारों का कहना है कि सम्राट अशोक अपने शुरुआती दिनों में बहुत ही ज्यादा क्रूर और निर्दई सम्राट था एक बार वह अपने ऊपर में टहल रहे थे उनके साथ कुछ गणिकाए थी । टहलने के बाद अशोक सम्राट वही अशोक के वक्त के पास विश्राम करने लगे इस समय गणिकाओं ने उसे अशोक के वृक्ष को तहस नहस कर दिया तो इससे क्रोधित होकर सम्राट अशोक ने लगभग 500 गणिकाओं को जिन्दा जला दिया था।
जिसने कालिंग जैसा विनाशकारी युद्ध लड़ा और बाद में उनके अंदर इतना परिवर्तन आया , जिसने 84000 बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। इतना बड़ा परिवर्तन वाकई में अपने आप में अद्भुत है। और आज सम्राट अशोक के साथ अशोक महान लिखा जाता है। अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। वीरता का सबसे बड़ा शांति पुरस्कार अशोक चक्र हमारे देश में वीरता के लिए दिया जाता है इससे हमें सिर्फ एक संदेश मिलता है कि व्यक्ति अपने कर्मों से महान होता है।
आशा करते हैं इस लेख से चक्रवर्ती अशोक सम्राट के बारे में आपको पूरी जानकारी मिली होगी सम्राट अशोक के बारे में आपका क्या विचार है हमें कमेंट बाक्स में जरूर बताएं।
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