Article 14 to 18: भारत में समानता का सच..

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Article 14 to 18 in Hindi – क्या भारत वाकई बराबरी का देश है ? जहां एक तरफ संविधान हमें समान अधिकार देता है, वहीं दूसरी तरफ ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। क्या आपने कभी जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव महसूस किया है ? क्या आरक्षण पर सवाल उठते हैं, या कभी किसी ने खुद को राजा, नवाब या विशेष कहकर आपके अधिकारों को चुनौती दी है ?

अब समय है इन सवालों के जवाब जानने का।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक के ये प्रावधान सिर्फ कागज के टुकड़े नहीं हैं, बल्कि हर नागरिक को कानून की नजर में समानता, सम्मान और न्याय दिलाने की गारंटी हैं। आईए गहराई से समझते हैं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 से 18.

क्या कहता है अनुच्छेद 14 ?

कोई भी सरकारी निकाय भारत के क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

इसका मतलब है कि सभी नागरिक कानून के समक्ष बराबर हैं कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है चाहे वो प्रधानमंत्री हो या आम नागरिक अगर कोई व्यक्ति विशेष अपराध करता है, तो उसकी जांच और सजा एक समान मानदंड पर होगी

उदाहरण से समझते हैं अगर कोई पुलिस अफसर किसी VIP केस में सख्ती नहीं करता लेकिन गरीब पर लाठीचार्ज करता है तो यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। और उस पुलिस ऑफिसर के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी ।

अनुच्छेद 15 यानी भेदभाव निषेध

राज्य धर्म, जाति, लिंग, नस्ल या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सरकारी सेवाएं सभी नागरिकों लिए समान रूप से खुली होंगी महिलाओं, बच्चों और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान जैसे आरक्षण लागू किया जा सकता है यह भेदभाव नहीं बल्कि सकारात्मक विशेषाधिकार माना गया है।

एक उदाहरण लेते हैं – अगर कोई स्कूल किसी समुदाय विशेष के बच्चे को सिर्फ उसके धर्म के कारण एडमिशन न दे तो यह अनुच्छेद 15 का साफ साफ उल्लंघन है। और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करने पर उस स्कूल पर कानूनी कार्रवाई कराई जा सकती है।

सरकारी नौकरियों में समान अवसर- कहता है अनुच्छेद 16

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 कहता है कि सरकारी नौकरियों और पदों पर नियुक्ति के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर मिलेंगे।

जैसे कि नौकरी में सिलेक्शन योग्यता और मेरिट के आधार पर होगा एवं जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा वहीं आरक्षण का प्रावधान अनुसूचित जाति, जनजाति, OBC और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए किया जा सकता है।

जैसे – अगर कोई संस्था महिला या किसी व्यक्ति विशेष को सिर्फ उसके लिंग के कारण नौकरी नहीं देता तो यह अनुच्छेद 16 का उल्लंघन होगा और सजा के लिए तैयार रहे।

अनुच्छेद 17 – करता है छुआछूत का अंत

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 भारतीय समाज में छुआछूत का अंत करता हैं। यानी छुआछूत जैसी घटनाओं को अनुच्छेद 17 दोषी करार देता हैं और सजा का प्रावधान करता हैं।

यह कानून सिर्फ सैद्धांतिक नहीं, बल्कि कानूनी दंड के साथ आता है छुआछूत को बढ़ावा देने वाले पर कानूनी कार्रवाई होगी। या SC/ST Atrocities Act के तहत भी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है ।

अगर मंदिर क्या किसी सार्वजनिक स्थान में दलितों या किसी अन्य समुदाय को प्रवेश से रोका जाएगा या बारात में घोड़ी चढ़ने या अन्य किसी प्रकार की हिंसा हो तो यह सीधे अनुच्छेद 17 का उल्लंघन है।

अनुच्छेद 18 करता है उपाधियों का अंत

राज्य किसी भी नागरिक को कोई विरासत में मिलने वाली या गैर आधिकारिक उपाधि नहीं देगा। यानी राजा महाराज,नवाब जैसी उपाधियों का खात्मा, लोकतंत्र में सब नागरिक समान हैं कोई ऊँचा या नीचा नहीं,भारत रत्न, पद्मश्री जैसी उपाधियां केवल सम्मान के लिए होती हैं, ये कानूनी अधिकार नहीं देतीं । उदाहरण से समझते हैं अगर कोई व्यक्ति खुद को राजा साहब कहकर विशेष सरकारी लाभ मांगे तो यह संविधान के विरुद्ध है। और अनुच्छेद 18 का उल्लंघन करता है।

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अगर कोई इन अधिकारों का उल्लंघन करे तो क्या करें ?

आपके पास है अनुच्छेद 32 यानी संवैधानिक उपचार का अधिकार हैं । आप सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं या मानवाधिकार आयोग में शिकायत कर सकते हैं , SC/ST आयोग या महिला आयोग‌ से मदद मांगी जा सकती है और FIR दर्ज कराके कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। यानी अनुच्छेद 32 अनुच्छेद 14 से 18 का उल्लंघन होने पर दोषियों पर कानूनी कार्रवाई कराने के लिए आपकी मदद करेगा।

विशेष मामलों में दोषी व्यक्ति को जेल, जुर्माना, या सरकारी लाभ जैसे सरकारी नौकरी, सरकारी सुविधा या अन्य कोई ऐसा लाभ जो सरकार की तरफ से उसे मिल रहा हो से वंचित किया जा सकता है।

Article 14 to 18 In Hindi- आखिर में कुछ

समानता का अधिकार सिर्फ शब्द नहीं, एक शक्ति है

अनुच्छेद 14 से 18 तक के प्रावधान हमें बताते हैं कि भारत केवल कागज़ों पर लोकतंत्र नहीं है यह हर नागरिक को गरिमा से जीने का हक देता है। अगर हम इन अधिकारों को पहचानें, तो ना सिर्फ खुद का बल्कि दूसरों का भी हक बचा सकते हैं।

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