Andolan से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गाथा लिखी गई है, जो साहस, बलिदान और संघर्ष से भरी हुई है । इतिहास के पन्नों में दर्ज इन आंदोलनों ने न केवल ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी, बल्कि भारतीय जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया ।
यहां हम विस्तार से भारत के पांच प्रमुख आंदोलनों पर चर्चा करेंगे, जिन्होंने हमारी स्वतंत्रता के रास्ते को प्रशस्त किया ।
1. 1857 का स्वतंत्रता संग्राम : पहली क्रांति की चिंगारी 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का पहला बड़ा प्रयास था । इसे ” सिपाही विद्रोह“ या” प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम” भी कहा जाता है । इस विद्रोह की शुरुआत अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और भारतीय सैनिकों के बीच असंतोष से हुई थी ।
मुख्य कारण :–
} धार्मिक हस्तक्षेप : अंग्रेजी सेना में प्रयुक्त नई राइफल के कारतूसों पर गाय और सुअर की चर्बी होने की अफवाह ने हिंदू और मुस्लिम सैनिकों को भड़काया ।
} राजनीतिक कारण : अंग्रेजों की” डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स” नीति के तहत रियासतों का विलय ।
} आर्थिक शोषण : किसानों और व्यापारियों पर करों का अत्यधिक बोझ ।
महत्वपूर्ण नेता और घटनाएं :-
} मंगल पांडे : विद्रोह का पहला शहीद ।
} रानी लक्ष्मीबाई : झांसी की रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी रियासत की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा ।
} तात्या टोपे और नाना साहेब : क्रांति के प्रमुख नेता ।
परिणाम :- यह आंदोलन सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने अंग्रेजों को यह अहसास करा दिया था , कि भारतीय जनता एकजुट होकर उनके शासन को चुनौती दे सकती है । यह देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने ईस्ट इंडिया कंपनी की कमान अपने हाथों में ले ली ।
2. स्वदेशी आंदोलन( 1905) आत्मनिर्भरता की नींव :- स्वदेशी आंदोलन 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू हुआ । इसका उद्देश्य विदेशी वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्त्रों और उद्योगों को बढ़ावा देना था ।
मुख्य उद्देश्य :- ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को कमजोर करना/ ,भारतीय उद्योगों को सशक्त बनाना ।
महत्वपूर्ण घटनाएं और नेता :-
} बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय ने इसे पूरे भारत में फैलाया ।
} विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई, और भारतीय खादी व अन्य उत्पादों का उपयोग बढ़ा ।
परिणाम :- यह आंदोलन भारतीय उद्योगों के पुनर्जीवन का आधार बना । भारतीय जनता में आत्मनिर्भरता की भावना जागी और ब्रिटिश सरकार को बंगाल विभाजन को रद्द करना पड़ा ।
3. असहयोग आंदोलन( 1920) गांधीजी का पहला बड़ा कदम :- महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला बड़ा जन आंदोलन था । इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के हर पहलू का बहिष्कार करना था
मुख्य कारण :-
} रौलेट एक्ट( 1919) इस कानून ने किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल भेजने का अधिकार दिया ।
} जलियांवाला बाग हत्याकांड( 1919) : ब्रिटिश जनरल डायर के आदेश पर निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलाई गईं ।
Andolan की रणनीति :-
आंदोलन की मुख्य रणनीति विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर टीकी थी ।
} सरकारी नौकरियों और स्कूलों का बहिष्कार ।
} खादी को अपनाने और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार ।
परिणाम :- यह आंदोलन बेहद सफल रहा, लेकिन 1922 में चौरी- चौरा कांड के बाद गांधीजी ने इसे वापस ले लिया । फिर भी इसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी ।
4. सविनय अवज्ञा आंदोलन( 1930) नमक सत्याग्रह की कहानी :- महात्मा गांधी ने 1930 में ब्रिटिश नमक कानून के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की । गांधीजी की ऐतिहासिक ”दांडी यात्रा,, इस आंदोलन का प्रमुख हिस्सा थी, जहां उन्होंने 24 दिनों में 240 मील चलकर समुद्र से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया ।
मुख्य उद्देश्य :-
} नमक कर का विरोध ।
} ब्रिटिश कानूनों का शांतिपूर्ण उल्लंघन ।
महत्वपूर्ण घटनाएं और नेता :-
} दांडी यात्रा में हजारों लोग गांधीजी के साथ जुड़े ।
} देशभर में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार और ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन किया गया ।
परिणाम :- इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला दिया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिला ।
5. भारत छोड़ो आंदोलन ( 1942) अंतिम क्रांति:- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में महात्मा गांधी ने” भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की । गांधीजी ने” करो या मरो” का नारा देकर भारतीय जनता को स्वतंत्रता के अंतिम संघर्ष के लिए प्रेरित किया ।
मुख्य कारण :-
} द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संसाधनों का उपयोग किया ।
} भारतीय जनता के अधिकारों की अनदेखी ।
महत्वपूर्ण घटनाएं और रणनीति :-
} इस आंदोलन के दौरान लाखों लोगों ने जेल भरो आंदोलन में भाग लिया ।
} कई क्रांतिकारी गुटों ने भूमिगत गतिविधियां शुरू कीं ।
परिणाम:- भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को यह अहसास करा दिया कि अब भारत पर शासन करना संभव नहीं है । और उन्हें लगने लगा था कि भारत की जनता अब आजादी के लिए एकजूट हो चुकी है । इसी को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी की कमान अपने हाथों में ले ली थी
निष्कर्ष : संघर्ष से मिली आजादी ये भारत के पांच बड़े आंदोलन हमारी स्वतंत्रता की नींव हैं । उन्होंने न केवल ब्रिटिश शासन को कमजोर किया, बल्कि भारतीय समाज में एकता और जागरूकता की भावना भी विकसित की । आज हमें इन आंदोलनों से प्रेरणा लेकर अपने देश को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य करना चाहिए ।
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