रावण का जन्म और उसका रहस्य प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों, विशेष रूप से वाल्मीकि रामायण और अन्य पुराणों में विस्तार से वर्णित है। रावण का जन्म राक्षस वंश में हुआ था, लेकिन वह एक असाधारण ज्ञानी, महाशक्तिशाली, और महान तपस्वी भी था। उसके जन्म से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलू हैं जो उसकी असाधारण शक्तियों और व्यक्तित्व को समझने में मदद करते हैं:
रावण का परिवार और उत्पत्ति
रावण का जन्म ऋषि विश्रवा और उनकी पत्नी कैकसी के पुत्र के रूप में हुआ था। विश्रवा महर्षि पुलस्त्य के पुत्र थे, जो ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। इसलिए, रावण को ब्रह्मण कुल से भी संबंध प्राप्त था। उसकी माता, कैकसी, राक्षस कुल से थीं। कैकसी ने इच्छा जताई कि उनका पुत्र शक्तिशाली और महाशक्तिशाली हो, और इसके लिए उन्होंने महर्षि विश्रवा से विवाह किया। कैकसी के तीन प्रमुख पुत्र थे: रावण, कुंभकर्ण, और विभीषण। इसके अलावा, उनकी एक पुत्री शूर्पणखा भी थी।
रावण की विद्वता और तपस्या
रावण बचपन से ही बहुत विद्वान और शक्ति का लोभी था। उसने वेदों, शास्त्रों, और विभिन्न कला-विद्याओं का अध्ययन किया और एक महान पंडित बना। उसने विशेषकर शिव भक्ति और तांत्रिक शक्तियों में गहरी रुचि दिखाई।
शक्तियों की प्राप्ति के लिए रावण ने घोर तपस्या की थी। ब्रह्मा से अमरता प्राप्त करने के प्रयास में, उसने अपने सिरों की आहुति दी। हर बार जब उसने अपना सिर काटा, एक नया सिर उग आता था। यह 10 बार हुआ, जिससे उसे ‘दशानन’ या दस सिर वाला कहा गया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर, ब्रह्मा ने उसे कई वरदान दिए, जिनके कारण वह अजेय बन गया और उसे देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, और यहां तक कि राक्षसों से भी कोई भय नहीं रहा।
रावण का महान ज्ञान
रावण केवल एक शक्तिशाली योद्धा ही नहीं था, बल्कि वह एक महान ज्ञानी भी था। वह चारों वेदों और छहों शास्त्रों का ज्ञाता था। उसकी विद्वता का प्रमाण यह है कि वह एक उच्च कोटि का संगीतज्ञ भी था और उसे वीणा बजाने में महारत हासिल थी। रावण के बारे में कहा जाता है कि उसने “रावण संहिता” नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें ज्योतिष और खगोल शास्त्र के गहन ज्ञान का वर्णन मिलता है।
रावण का जन्म का आध्यात्मिक रहस्य
रावण का जन्म केवल एक राक्षस के रूप में नहीं हुआ था। उसे कुछ अर्थों में एक दिव्य आत्मा भी माना जा सकता है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, रावण और कुंभकर्ण, जय और विजय नामक विष्णु के द्वारपाल थे, जो एक श्राप के कारण राक्षस के रूप में जन्मे थे। उन्होंने यह श्राप प्राप्त किया था कि वे तीन जन्मों तक भगवान विष्णु के शत्रु बनेंगे। पहले जन्म में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के रूप में, दूसरे में रावण और कुंभकर्ण के रूप में, और तीसरे जन्म में शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में। इन तीन जन्मों के बाद वे फिर से विष्णु के पास लौट सकेंगे।
रावण का व्यक्तित्व
रावण एक विरोधाभासी व्यक्तित्व का धनी था। वह एक ओर महान पंडित, शिव भक्त, और धर्मशास्त्रों का ज्ञाता था, तो दूसरी ओर उसका घमंड, क्रोध, और अनीति उसकी पतन का कारण बना। वह शक्ति और अधिकार का भूखा था, लेकिन उसने धर्म और नीतियों का पालन नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप उसे अंततः भगवान राम के हाथों अपने जीवन का अंत देखना पड़ा।
रावण का जन्म, उसके ज्ञान और शक्तियों के पीछे का यह रहस्य बताता है कि वह केवल एक सामान्य राक्षस नहीं था, बल्कि उसका जीवन और उसकी विद्वता धर्म, नीति, और अधर्म के बीच की जटिलता को दर्शाती है।