माता ललिता देवी मन्दिर, त्रिलोकपुर से सवा2 किलोमीटर दूर।इस मंदिर में दर्शन से पूरी होती है समस्त मनोकामनाएंजिला सिरमौर के प्रसिद्ध देवी मंदिर माता महामाया बाला सुन्दरी त्रिलोकपुर से लगभग सवा दो किलोमीटर दूरी पर जंगल के मध्य में माता ललिता देवी का आलौकिक मन्दिर स्थित है।

माता ललिता देवी मन्दिर, त्रिलोकपुर से सवा2 किलोमीटर दूर।इस मंदिर में दर्शन से पूरी होती है समस्त मनोकामनाएंजिला सिरमौर के प्रसिद्ध देवी मंदिर माता महामाया बाला सुन्दरी त्रिलोकपुर से लगभग सवा दो किलोमीटर दूरी पर जंगल के मध्य में माता ललिता देवी का आलौकिक मन्दिर स्थित है। माता ललिता देवी यहां आने वाले हर श्रद्धालु की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। भक्त यहां माता को दूध, घी, मक्खन तथा सेवियों का प्रसाद लगाते हैं।इसको लिंगधारिणी माता के नाम से भी जाना जाता है। श्री दुर्गा क्वच के अनुसार प्राणीमात्र के ह्रदय की रक्षा मां ललिता देवी करती हैं। माता ललिता देवी के यहां प्रतिष्ठित होने की कहानी किंवदंतियों पर आधारित है। कहते हैं

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कि वर्षों पूर्व इस पहाड़ी पर जानी चोर का डेरा था।वह एक बहुत बड़ा चोर था, परन्तु वह मां शक्ति का बहुत बड़ा भक्त भी था। अपने चोरी के सामान से वह एक निर्धारित हिस्सा माता को चढ़ाता था। कहते हैं कि एक बार चोरी करते ही उसके पीछे राजा के सैनिक लग गए। यहां पहुंचते पहुंचते सैनिकों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। उसने यहां माता को याद करके माता की पत्थर की प्रतिमा स्थापित करते हुए स्वयं की रक्षा की प्रार्थना की। सैनिक भटक गए तथा जानी चोर उनकी पकड़ में न आ सका।जानी चोर की गुफा यहां से लगभग दो किलोमीटर घने जंगल में बताई जाती है। इस पूरे पर्वत को ललिता देवी का टिब्बा कहा जाता है। साथ लगते गांव पोठिया की लड़की मीना चौहान जिसका ससुराल डुकी गांव में है, माता की अनन्य भक्त है बताती हैं कि यहां पर माता ललिता देवी साक्षात रूप में विराजमान हैं तथा सच्चे मन से आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

यह देवी यहां के कई गोत्रौं की कुलदेवी भी है। माता ललिता देवी की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड महापुराण के उत्तर भाग के अनुसार हवनकुंड से हुई बताई गई है। प्राचीन काल में भगवान शिव के गण चित्रकार ने चित्राकार पुरुष को उत्पन्न किया तथा उसने भगवान शंकर को प्रसन्न करने हेतु शतरूद्रीय जाप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उसको साठ हजार वर्ष तक राज्य करने का वरदान देने के साथ साथ अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र प्रदान कर दिए। ब्रह्मा जी तथा अन्य देवी देवताओं ने भी उसे अनेक वरदान दिए तथा उसे भण्ड -भण्ड नाम दिया। जिससे वह भण्ड के नाम से जाना जाने लगा। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसका राज्याभिषेक करवाया जिससे उसका नाम भण्डासुर पड़ा। उसके चार पत्नियां और आठ पुत्र हुए।

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शुक्राचार्य के कारण उसकी आसुरी प्रवृत्ती हो गई । उसने इन्द्रासन के लिए देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया। देवताओं ने यज्ञ किया जिसमें से माता ललिता देवी प्रकट हुई तथा माता ललिता देवी के साथ महासंग्राम में भण्डासुर अपनी सेना सहित मारा गया।एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने अपना चक्र चलाया जिससे सृष्टि जलमग्न होने लगी। देवताओं द्वारा स्तुति किए जाने पर माता ललिता देवी प्रकट हुई तथा उसने भगवान ब्रह्मा का चक्र शान्त कर संसार की रक्षा की।इस मंदिर के पुजारी पंडित प्रकाश चन्द शर्मा बताते हैं कि माता यहां हर समय विराजमान हैं तथा जो श्रद्धालु श्रद्धा से यहां माता के पवित्र नाम का जाप करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भक्त समय-समय पर यहां भण्डारे भी आयोजित करते हैं

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