Police Uniform Truth…
Police: अगर आप कभी किसी ट्रैफिक चौराहे से गुज़रे हों या किसी पुलिस अफसर को ड्यूटी पर देखा हो, तो आपने एक चीज़ ज़रूर नोट की होगी — उनके कंधे से झूलती एक खास रस्सी। सुनहरी, सफेद या फिर किसी रैंक के मुताबिक रंग-बिरंगी यह डोरी दिखने में तो मामूली लगती है, लेकिन असल में यह पूरे पुलिस सिस्टम की शान और जिम्मेदारी का प्रतीक है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं लान्यार्ड” या व्हिसल कॉर्ड की, जो पुलिस की वर्दी का वह हिस्सा है, जिसे बहुत कम लोग समझते हैं, लेकिन जिसकी अहमियत बहुत बड़ी है।
अब सवाल उठता है — आखिर क्यों होती है ये डोरी ? क्या यह सिर्फ शो-ऑफ है या इसके पीछे कोई गहरी बात छुपी है? आइए, जानते हैं इसकी पूरी सच्चाई।
क्या है लान्यार्ड? सिर्फ रस्सी नहीं, ये सिस्टम है
लान्यार्ड एक मजबूत, व्यवस्थित डोरी होती है जो पुलिसकर्मियों की वर्दी से जुड़ी होती है। इसका मुख्य उद्देश्य होता है सीटी यानी व्हिसल को सुरक्षित और तुरंत उपलब्ध रखना। यह डोरी कंधे पर से होते हुए नीचे सीटी से जुड़ी होती है। जब भी पुलिस अफसर को किसी परिस्थिति में तेज़ी से सिग्नल देना होता है — जैसे ट्रैफिक रोकना हो, भीड़ नियंत्रित करनी हो या आपातकालीन अलर्ट देना हो — वह सीटी को तुरंत मुंह तक ले जाकर इस्तेमाल कर सकते हैं।
और सबसे खास बात – जब उनका काम पूरा हो जाता है, सीटी वहीं लटक जाती है, ना गिरती है, ना खोती है।
बैंकिंग की तरह — सुरक्षा और एक्सेस दोनों जरूरी
सोचिए, बैंकिंग सिस्टम में पासवर्ड और ओटीपी कितने ज़रूरी होते हैं। वह छोटे से कोड आपके पूरे खाते को सिक्योर करते हैं और साथ ही ट्रांजैक्शन को संभव बनाते हैं। ठीक उसी तरह, लान्यार्ड भी पुलिस व्यवस्था में सिक्योरिटी टूल और एक्सेसिबिलिटी डिवाइस दोनों है।
सिक्योरिटी – सीटी कहीं गिर न जाए, खो न जाए — लान्यार्ड उसे पुलिस अफसर के शरीर से जोड़ता है।
एक्सेस – जैसे आप नेटबैंकिंग में फिंगरटच से तुरंत लॉगिन करते हैं, वैसे ही पुलिस अफसर लान्यार्ड के सहारे बिना देरी के सीटी तक पहुंचते हैं।
सिर्फ इस्तेमाल नहीं, पहचान भी है
लान्यार्ड केवल एक उपकरण नहीं है, यह पुलिस यूनिफॉर्म की पहचान और अनुशासन का प्रतीक भी है। हर अधिकारी की वर्दी में यह दर्शाता है कि वह जिम्मेदारी, अनुशासन और ट्रेनिंग का प्रतीक है। खासकर विशेष आयोजनों, परेड और सम्मान समारोहों में इसकी चमक और रंग पूरी वर्दी को और भी शानदार बना देती है।
कुछ राज्यों और रैंकों में अलग-अलग रंगों के लान्यार्ड दिए जाते हैं — जैसे कि:
- नीला रंग- सामान्य ड्यूटी पुलिस
- सफेद- ट्रैफिक पुलिस
- लाल और सुनहरा- विशेष टास्क फोर्स या अधिकारी वर्ग
इतिहास में झांके तो…
लान्यार्ड की परंपरा भारत में नहीं, बल्कि ब्रिटेन और यूरोपीय देशों से शुरू हुई थी। सैन्य बलों में इसे पहली बार उपयोग में लाया गया था, ताकि सैनिक अपनी छोटी चीज़ें जैसे सीटी, चाबी, या अन्य उपकरण आसानी से लटकाकर रख सकें और तुरंत काम में ले सकें।
बाद में यही परंपरा भारतीय पुलिस व्यवस्था में भी शामिल की गई और आज यह गौरव और गरिमा का प्रतीक बन चुकी हैं
परंपरा और टेक्नोलॉजी का संतुलन
आज के डिजिटल युग में जब पुलिस विभाग भी स्मार्ट वर्दी, बॉडी कैमरा, GPS और डिजिटल डिवाइस से लैस हो रहा है, तब भी लान्यार्ड की उपयोगिता खत्म नहीं हुई है। यह दर्शाता है कि कुछ चीज़ें समय के साथ बदली नहीं जातीं, क्योंकि उनका मूल्य केवल कार्यक्षमता नहीं, बल्कि सम्मान और पहचान से जुड़ा होता है।
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ग्राउंड लेवल से बात करें तो…
हमने दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल से इस पर बात की। उन्होंने कहा,
लान्यार्ड हमारी सीटी से जुड़ा नहीं है, ये हमारी ज़िम्मेदारी से जुड़ा है। जब हम ड्यूटी पर होते हैं, तो ये रस्सी हमें हर पल याद दिलाती है कि हम एक सिस्टम का हिस्सा हैं और हमें अनुशासन में रहकर काम करना है।
एक डोरी जो पूरे सिस्टम की रीढ़ है
लान्यार्ड को सिर्फ एक डोरी कह देना सही नहीं होगा। यह एक ऐसा साधन है जो पुलिसकर्मियों की दिनचर्या, कार्यशैली और आपातकालीन प्रतिक्रियाओं को बेहतर बनाता है। यह सम्मान, अनुशासन और परंपरा का प्रतीक है — कुछ वैसा ही जैसे बैंक में KYC एक जरूरी पहचान है, वैसे ही पुलिस की वर्दी में लान्यार्ड उनकी जिम्मेदारी का परिचय है।
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