प्रश्न आचार्यजी आध्यात्मिक दृष्टि से सफल जीवन क्या है? एक इंसान का दुनिया में आने का उद्देश्य क्या है? जीवन की सफलता निर्धारित करने में पैसे का कितना महत्त्व है?
आचार्य प्रशांत : आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सफल जीवन क्या है । यह जानना है तो देखिए कि जीवन असफल कब हो जाता है असफल जीवन वो है जो दुःख में बीत रहा है। दुख आता है। तमाम तरह की सीमाओं और बंधनों से तो अध्यात्मिक दृष्टि से सफल जीवन वो है जो अपने बंधन काट सके जो दुख के कारणों को मिटा सकें।
और इसी बात से दूसरे प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। दूसरा प्रश्न कहता है कि जीवन में आने का उद्देश्य क्या है ।
बच्चा पैदा होता है बंधनों के साथ अंकित शारीरिक वृतियों के साथ और जैसे जैसे वो बड़ा होता जाता है, उस पर बंधन और कड़े होते जाते हैं। ।जीवन का उद्देश्य और जीवन के सफलता निहित हैं।
और यही बात ले जाती है तीसरे प्रश्न की ओर पैसे का कितना महत्त्व है?
जिंस हद तक पैसा आपके बंधनों को काटने में सहायक हो पैसा अति आवश्यक है और जब पैसा खुद एक बंधन बन जाए तब पैसा अनावश्यक ही नहीं घातक हैजो आदमी बंधनों में हो वो अपने सारे संसाधनों का, अपनी सारी ताकत का इस्तेमाल करें, अपने बंधन काटने के लिए और एक व्यक्ति के पास क्या क्या संसाधन होते हैं समय एक संसाधन है, बुद्धि संसाधन है, ताकत संसाधन है, ज्ञान संसाधन और इसी तरह से पैसा भी संसाधन है तो जो बेड़ियों में हो और गिरफ्त में हो उसे अपने सारे संसाधनों का उपयोग करना ही पड़ेगा। वो कहेगा मेरे पास जो कुछ है उसका इस्तेमाल करूँगा आजादी की मुक्ति के लिए मुक्ति के लिए ज्ञान की जरूरत हो तो तुम्हे ज्ञान चाहिए। मुक्ति के लिए अगर समय की जरूरत हो तो तुम्हें समय चाहिए। मुक्ति के लिए अगर ताकत की बल की जरूरत हो तो तुम बल अर्जित करना पड़ेगा और मुक्ति के लिए अगर पैसे की जरूरत है, तुम्हें पैसा भी चाहिए। अध्यात्म पैसे का विरोध नहीं होता। अध्यात्म कहता है कि पैसा ना अच्छा है ना बुरा है। मुक्ति अच्छी है तो मुक्ति के लिए जितना पैसा चाहिए जरूर अर्जित करो पर जितना पैसा मुक्ति के लिए चाहिए। उससे ₹1 भी ज्यादा मत कमाना क्योंकि अगर तुमने उसे एक रूपया भी ज्यादा कमाया तो जो तुम अतिरिक्त कमा रहे हो वही तुम्हारा बंधन बन जायेगा।
पैसा बोझ नहीं बनना चाहिए। दिमाग पर बोझ हो तो पैसे का उपयोग उस बोझ को हटाने के लिए होना चाहिए। दुर्भाग्य की बात यह है कि जो निर्धन होता है उसे बोझ मिलता है कि धन नहीं है धन कम है जो धनवान हो जाता है उस पर बोझ चढ़ जाता है कि धन ज्यादा है, इसकी रक्षा करनी है।इस को और बढ़ाना है ये उस देना है। कि उसको देना है। ये दोनों ही स्थितिया गडबड है। पैसे की कमी अगर बेचैनी के कारण बन जाए तो ये भी गड़़बड़ हैं और पैसों को बहुलता अगर बेचैनी का कारण बन जाये तो ये और बड़ी गडबड है,और ज्यादा गडबड बात क्यों है क्योंकि ना सिर्फ पैसा बोझ बन गया है बल्कि इस बोझ को तुमने परिश्रम कर करके कमाया है।कितनी बड़ी बेवकूफ़ी हो गयी न निर्धन के पास तो कमी है। कम से कम वो कमी उसने मेहनत करके अर्जित नहीं करी धनवान के पास जो एम डी सी है। उसी को तो उसने अर्जित किया है जैसे कोई अपनी बिमारी मेहनत कर करके कमाए जैसी कोई पैसा देकर अपने लिए मुसीबत खरीदकर लाए तो धन कम होना एक समस्या है। पर व्यर्थ धन ज्यादा अर्जित कर लेना, उसमें भी ज्यादा बड़ी समस्या है जितना धन तुम्हारी मुक्ति में सहायक बनें।
मुक्ति का कोई बहुत उच्च लक्ष्य हो तुम्हारे पास और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करोड़ों कमाओ 500 करोड़ । 5000 हजार करोड़ कोई इलज़ाम नहीं लगा सकता तुम पर की तुम लालची हो बहुत बड़ा विश्वविद्यालय स्थापित करना है, चाहे उसके लिए धन। हो धन इकट्ठा करो अर्जित करो। कमा सकते हो तो कमाओ, दान मांग सकते हो तो मांगों और मन में यह बात ना लाएँ की यह लालच का काम हो गया। हम इतना पैसा क्यों इकट्ठा कर रहे है बिल्कुल ठीक कर रहे हो यही धर्म है।जीवन में ऐसे अवसर हो सकते हैं कि हो सकते हैं जब पैसा कमाना और खूब कमाना धर्म हो सकता है और जीवन में ऐसे भी बहुत अवसर होते हैं दृष्टित होते हैं जब पैसा कमाना महा -अधर्म होता है की आपका मन पैसे का उपयोग कहाँ करने जा रहा है।
अगर पैसा कम होगा तो भी मन में घूमेगा और अगर पैसा ज्यादा होगा तो भी मन में घूमेगा और जो कुछ मन में घूम रहा है, वहीं आपका सर दर्द बन गया सर दर्द के साथ कौन जीना चाहता है?
प्रश्न जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीजें क्या है?
आचार्य – जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जीवन ही है हमें जिंदगी में चीजों कीमत याद रहती हैं और चीजों को कीमत देते देते हैं जिंदगी को कीमत देना भूल जाते।देखो न क्या पूछ रहे हो।इम्पोर्टेंट थिंक इन लाइफ। जिंदगी में कौन सी चीज़ बड़ी महत्वपूर्ण है। हर चीज़ जिंदगी में है। ज़िंदगी है तो चीजें और जिंदगी ही नहीं तो कौन सी चीजे कीमती है। लेकिन चीजें इतनी कीमती हो जाती है कि जिंदगी पर ध्यान ही नहीं जाता कि जिंदगी कैसी भीत रही है। और जब मैं कह रहा हूँ ज़िन्दगी तो मेरा मतलब सांस लेने और चलने फिरने और यांत्रिक जीवन से नहीं है। जिंदगी तब हैं जब उसमें आनंद हो, जब मुक्ति हो, उड़ान हो, हो जिंदगी मैं सिर दर्द हो, उलझन हो, संध्या हो वो जिंदगी ही मृत्यु समान है।
तो अधिक कीमती क्या है कोई चीज़ नहीं प्रफुल्लित आनंदित मुक्ति जीवन सबसे कीमती है। आनंदी की दिशा में अगर किसी वस्तु से सहायता मिलती हो तो वो वस्तु जरूर लेकर आओ और आनंद की दिशा में अगर किसी वस्तु से अवरोध बढ़ता है तो उस वस्तु को उठाकर फेंक दो। मूल बात वस्तु है ही नहीं है। मूल बात जीवन है और जीवन का अर्थ खाना पीना, सोना, जागना, सास लेना नहीं है। जीवन का अर्थ है जीवन को आनंद में उड़ाना में खुल के अनुभव कर पाना।
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