बुराइ के प्रतीक माने जाने वाले रावण के पुतले को पर पूरे देश में जलाने की परंपरा है, लेकिन कई ऐसे भी लोग हैं जो रावण को जलने पुतले की लकड़ियों को शुभ मान कर घर ले जाते हैं।क्या आप जानते हैं की रावण दहन होने के बाद लोग उसकी राख को अपने घर क्यों ले जाते हैं तो हम आज आपको बताएंगे ऐसा क्यों करते है ।
बुराई के प्रतीक माने जाने वाले रावण के पुतले को दशहरे पर जलाने की परंपरा है, लेकिन कई ऐसे भी लोग हैं जो रावण के जले पुतले की लड़कियों को सुभ मान कर घर ले जाते हैं या अनोखी रस्म धन धन्य की प्राप्ति के लिए निभाई जाती है।
हर साल रावण कुम्भकर्ण के पुतलों को जलाने की परंपरा बीते ६४ सालो से जारी है हर साल हजारों लोग इस कार्यक्रम को देखने के लिए जाते हैं ।और लोग बेसब्री से इस का इंतजार करते हैं। लोगों का इंतज़ार होता है रावण के पुतले का दहन जल्द हो तो वे उसकी अस्थिया यानी पुतली की जली लकड़ियां बटोर सके ।
घर के मुख्य हिस्से में रखते है ।
रावण के पुतले के दहन के बाद लोग पुतले की जली लकड़ियां, जिसमें बांस की कमचिया लकड़ियाँ होती है। लोग उन्हें जमीन पर रगड कर बुझाते हैं इन लड़कियों को ठण्डा होने के बाद वे अपने घर लेकर जाते हैं ।और अपने घर के पूजा कक्ष में रख देते हैं। कुछ लोग इसे घर के मुख्य हिस्से में रखते हैं। ।यही कारण है। की पुतला जलते ही सैकड़ों लोग इसकी जली लकडिया बटोरने में जुट जाते हैं। कोशिश रहती है राक बनने से पहले उसकी लकड़ी कब्जे में कर ले जाए ।
धन-धान्य से परिपूर्ण
मान्यता है कि पुतला दहन के बाद लकड़ियां घर ले जाने से परिवार धन धान्य से परिपूर्ण रहता है. यहां लकड़ियां बटोरती गृहणी गीता की माने तो रावण ज्ञानी पंडित था. शनिदेव उनके पैर में रहते थे. देवी देवता ग्रह नक्षत्र उनके वश में थे पर घमंड की वजह से उनकी मृत्यु हुई. ज्ञानी पंडित होने की वजह से और धन-धान्य से परिपूर्ण होने के कारण उनकी राख और लकड़ी को घर ले जाते हैं. ताकि सुख संपत्ति बनी रहती है, धन की कमी नहीं होती. एक अन्य गृहणी वर्षा के मुताबिक उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि रावण दहन के बाद पुतले की जली लकड़ी घर पर रखने से सब कुछ अच्छा होता है.
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