दलित महापुरुष5 दलित महापुरुष

भारत का इतिहास उन महापुरुषों से भरा है जिन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष किया और दर्शनकल्प का परिचय दिया इनमें से कई महापुरुष दलित समुदाय से थे जिन्होंने अपने कार्यों से न केवल दलित समाज को बल्कि पूरे भारत देश को प्रेरित किया और आगे बढ़ने का काम किया। भारत देश में ऐसा हुआ है कि कुछ महापुरुषों को सिर्फ दलितों का नेता ठहरा दिया गया है। जो महापुरुषों का अपमान है।

आज के लेख में हम 5 दलित महापुरुषों की योगदान पर चर्चा करेंगे जिन्होंने भारत देश को एक नई दिशा देने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

दलित महापुरुष

1 . डॉक्टर भीमराव अंबेडकर :
(1891- 1956)

भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जिन्हें हम बाबासाहेब के नाम से भी जानते हैं। डॉ आंबेडकर एक महान समाज सुधारक दार्शनिक लेखक कानूनी ज्ञाता थे।
उनका जन्म 14 अप्रैल सन 1891 में महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था। जहां उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। डॉ अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक माना जाता है। दुनिया में उन्हें (The Symbol of knowledge) के नाम से भी जाना जाता है।

योगदान………. डॉ अंबेडकर का योगदान भारत के निर्माण में अतुलनीय रहा है। उन्होंने भारतीय निर्माण से लेकर दलितों को उनके अधिकार दिलाने के लिए जीवनभर संघर्ष किया। और अपने जीवन में अनेक आंदोलन किये, महिलाओं के लिए शिक्षा में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
उन्होंने जाति प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और भारतीय संविधान में सभी को समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के अवसर प्रदान किये। डॉ आंबेडकर सिर्फ दलितों के नेता नहीं थे, बल्कि भारत की जनता के हित में उन्होंने अनेक कार्य किये। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया डॉ अंबेडकर के विचारों की देन है ।

विचारधारा : डॉ अंबेडकर का मानना था कि शिक्षा और कानूनी अधिकारों के जरिए ही समाज में समानता आ सकती है।

2‌. ज्योतिबा फुले ( 1827-1890) :

ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योति राव गोविंद राव फुले था। ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। उनकी माता का नाम चिमनाबाई और पिता का नाम गोविंद राव था। उनका परिवार पहले से ही माली का काम करता था। ज्योतिबा फुले एक महान क्रांतिकारी समाज सुधारक दार्शनिक और लेखक थे। ज्योतिबा फुले का विवाह 1841 में सावित्रीबाई फुले के साथ हुआ था।

योगदान…………. ज्योतिबा फुले एक महान समाज सुधारक और शिक्षक थे जिन्होंने दलित और महिलाओं की शिक्षा के लिए संघर्ष किया। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर समाज के महिलाओं,पिछड़े वर्गों के लिए स्कूल खोलें। उन्होंने सती प्रथा बाल विवाह और जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई दलित और महिलाओं की शिक्षा के लिए उनका योगदान अतुल्यनीय है।
सन 1873 में उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की जिसका उद्देश्य समाज के निचले वर्गों को समानता दिलाना था। इस महान समाजसेवी ने समाज सुधार के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी । इनके इसी भाव को देखकर 1888 में इन्हें महात्मा की उपाधि दी गई।

विचारधारा : महात्मा ज्योतिबा फुले का मानना था कि शिक्षा से ही समाज में सुधार लाया जा सकता है।

3. मान्यवर कांशीराम- (1934 – 2006)

काशीराम एक प्रमुख दलित नेता और राजनीतिक विचारक थे। उनका जन्म 15 मार्च सन 1934 को ख्वासपुर रोपड़ पंजाब में एक एक सिख दलित परिवार में हुआ था। काशीराम 1858 में पुणे के रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक पद पर नियुक्त हुए । और अपना पूरा जीवन बहुजन समाज की सेवा में समर्पित कर दिया और डॉक्टर अंबेडकर का सपना पूरा करने के लिए काम करते रहे। 9 अक्टूबर 2006 को उनका परिनिर्वाण हो गया।

योगदान……….. 6 दिसंबर 1981 को काशीराम ने DS- 4 का गठन किया ‌। बाबासाहेब के जन्मदिन पर 14 अप्रैल 1984 को काशीराम जी ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की।
काशीराम ने दलित और अन्य पिछड़े वर्गों को संगठित किया और उन्हें राजनीतिक मंच प्रदान किया।
यह काशीराम की मेहनत का करिश्मा ही था जो दूसरे चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाया। 3 जून 1995 को बहुजन समाज पार्टी की पहली मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को बनाया गया। और साल 2007 में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई।
जो मिशन महात्मा ज्योतिबा फुले,साहू डॉ अंबेडकर के साथ लगभग दफन हो चुका था । साधनहीन काशीराम ने उसको पुनर्जीवित कर बहुजन समाज को एक नई राह दिखाई है।

विचारधारा : काशीराम का मानना था की राजनीतिक सशक्तिकरण से ही दलित समाज को असली स्वतंत्रता प्राप्त हो सकती है।

4. सावित्रीबाई फुले ( 1831 1897)

भारत की प्रथम महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले थी । सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी सन 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खंदोसी नवैसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई फुले पहले बालिका विद्यालय की प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थी। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह जिया। जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह कराना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और महिलाओं को शिक्षित बनाना।
वह एक कवियत्री भी थी । उन्हें मराठी की आदि कवयित्री के नाम से भी जाना जाता है।

योगदान और सामाजिक मुश्किलें………… सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और दलितों के लिए जीवन भर संघर्ष किया बाल विवाह, सती प्रथा , महिलाओं की शिक्षा जैसी कुरीतियों का विरोध किया। वे भारत की पहली महिला शिक्षिका थी।

जरा सोचिए आज से लगभग 190 साल पहले उसे समय भारत में भेदभाव रूढ़िवाद चरम पर था उस समय महिलाओं के लिए शिक्षा एक घोर पाप था । और सावित्रीबाई फुले ने स्कूल खोलकर इस पाप को चुनौती दी। जब वे पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थी रास्ते में समाज के लोग उन पर पत्थर ,गोबर ,कीचड़ फेंका करते थे। सावित्रीबाई को स्कूल पहुंचकर अपने कपड़े बदलने पड़ते थे। सावित्रीबाई फुले पूरे देश की महानायिक थी, उन्होंने हर बिरादरी और धर्म के लिए काम किया। सावित्रीबाई फुले का व्यक्तित्व अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा देता है।

विचारधारा : सावित्रीबाई फुले का मानना था ,कि शिक्षा ही सभी को आत्मनिर्भर बन सकती है ‘चाहे उनका लिंग या जाति कुछ भी हो।

5. राम स्वामी परियार ( 1879 1973 )

इरोड वेंकट रामास्वामी पेरियार उन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता है जो तमिल में एक सम्मानित शब्द है। इनका जन्म 17 सितंबर 1879 को पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड संपन्न हिंदू की बलिजा जाति में हुआ था। उनके घर में धार्मिक उपदेशों का सिलसिला लगा रहता था लेकिन बचपन में ही यह तर्क वितर्क करने लगे थे। इनका पत्नी का नाम नगम्मल था। इन्होंने अपने विचारों से अपनी पत्नी को भी और ओत प्रोत किया।

योगदान……….. दक्षिण भारत के प्रमुख समाज सुधारक थे ,उन्होंने धार्मिक जातिवाद और कट्टरता के खिलाफ संघर्ष किया । पेरियार ने द्रविड़ कदम की स्थापना की जिसका उद्देश्य जातिवाद और धार्मिक भेदभाव को खत्म करना था।
पेरियार 20वीं सदी में तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता रहे हैं । जो दलित- शोषण और गरीबों के उत्थान के लिए कार्य करते रहे। ये जिंदगी भर देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह , भेदभाव एवं समाज में फैली कुप्रथाओं का पूरी जिंदगी विरोध करते रहे।

विचारधारा : पेरियार का मानना था की जाति और धर्म के बंधनों से मुक्त होकर इस समाज में सच्चे समानता स्थापित हो सकती है।

आखिर में कुछ ……….
ये 5 दलित महापुरुष समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है इन्होंने न सिर्फ दलित समाज के लिए संघर्ष किया, बल्कि भारत देश को एक नई दिशा दी, जिसका नतीजा आज भारत देश पहले की तुलना में एक बेहतर स्थिति में है, और आगे भी उन्नति करता रहेगा हमें जरूरत है अपने समाज में सुधार करने की- अपने विचारों को बदलने की ।

इन महापुरुषों ने सामाजिक न्याय शिक्षा समानता के महत्व को रेखांकित किया इन महापुरुषों के विचार आज भी हमारे लिए प्रेरणादायक है और हमें यह याद दिलाते हैं कि सामाजिक सुधार के लिए संघर्ष और शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण हथियार है।

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