एक बार एक महात्मा जंगल से गुजर रहा था ।
एक झाड़ी की ओट में उन्हें कुछ पशुओं की वार्तालाप सुनाई दी । महात्मा रुक कर सुनाने लगे।
एक पशु ने कहा : धरती पर कितना कुछ है । फिर भी मनुष्य न जाने क्यों हम पशुओं का वध करते हैं। कभी आखेट के लिए तो कभी भोजन के लिए और कभी अपने मनोरंजन के लिए एक दूसरे से युद्ध करवा कर।
दूसरे वरिष्ठ पशु ने कहा: यह तो नैतिक तौर पर गलत बात है मगर परमात्मा ने पशु पक्षियों को बनाया ही इसलिए है। की प्राकृतिक का संतुलन बना रहे। पहले पशु ने पूछा कैसे।
दूसरे ने जवाब दिया अगर एक मनुष्य दूसरे पशुओं की हत्या करता है तो यह गलत है तो एक शक्तिशाली पशु द्वारा दूसरे पशु की हत्या करना भी गलत है। मगर यह प्राकृतिक रूप से गलत नहीं है। मांसाहारी पशु फिर क्या खाएगा।
और अगर मनुष्य और शक्तिशाली पशु छोटे शक्तिहीन पशुओं को नहीं मारेंगे तो पृथ्वी पर प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा।
महात्मा चिंतन करते हुए आगे बढ़ गए।
क्या यह वार्तालाप सचमुच सही थी।
विचार करने पर तो यह उचित जान पड़ती है । प्रत्येक प्राणी का जन्म क्यों हुआ । क्या दूसरे प्राणी का भोजन बनने के लिए।
विचार करते हुए महात्मा चले जा रहे थे। आगे चलकर उन्हें एक सांप और कुकुर के बीच लड़ाई होते हुए दिखाई दी। सांप पूरी ताकत से कुकर को व्यवस्थित कर रहा था। मगर कुकुर बहुत खूंखार था। थोड़ी देर में कुकर ने सांप को उसकी देह से मुक्त कर दिया। सांप की आत्मा कुकर को धन्यवाद देते हुए परलोक चली गई।
महात्मा इस घटना पर मुस्कुराए।
संदेह समय अपने शिष्यों के समक्ष यही बिंदु उन्होंने चिंतन के लिए वाद विवाद के लिए रखा।
सभी द्वारा दिए गए तर्कों से संतुष्ट न होने पर उन्होंने कहना शुरू किया प्राणी मात्र का जन्म इस लोक में अपने जन्म चक्र से मुक्त होने के लिए हुआ है। इस दौरान 84 लाख जुनी भुगत कर मनुष्य का जीवन मिलता है।
यही वह जीवन है जो इंसान 84 लाख जुनियों से गुजरता है हर जीवन उसके लिए एक ही लक्ष्य लेकर आता है। जीवन मुक्त होकर अगले फिर अगले फिर मनुष्य का जीवन पता है
और इस जीवन में उनसे अधिक शुभ अवसर मिलते हैं इस जन्म चक्र से मुक्त होने का प्रयास करते हैं
परोपकार भक्ति सत्संग और सत्कर्म यह कुछ मार्ग है जिसका अनुसरण कर कर वह बैकुंठ को प्राप्त कर सकते हैं यह ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है । इसी लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए मनुष्य को जन्म मिलता है।
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