महात्मा गांधी जी के विचार आज भी हमारे जीवन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक हैं। उनके सिद्धांत और मूल्य मानवता के विकास और समाज के उत्थान के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। 2 अक्टूबर, जो उनकी जयंती है, हमें उनके विचारों को याद करने और उन्हें अपने जीवन में लागू करने का अवसर देता है। यहाँ गांधीजी के कुछ प्रमुख विचार दिए गए हैं:
1 अहिंसा (Non-violence: गांधी जी का मानना था कि अहिंसा सबसे शक्तिशाली हथियार है। उनके अनुसार, किसी भी स्थिति में हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए, चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक। सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही समाज में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सकता है। “अहिंसा मानवता के लिए सबसे बड़ा धर्म है।”
2. सत्य (Truth): सत्य गांधी जी के जीवन और विचारों का प्रमुख आधार था। उनका मानना था कि सत्य की ताकत सबसे बड़ी है और सत्य के मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति कभी पराजित नहीं हो सकता। “सत्य ही भगवान है।”
3. स्वराज (Self-rule) : गांधी जी का स्वराज का सिद्धांत केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था। उनके अनुसार, स्वराज का अर्थ था आत्म-निर्भरता, अपने कार्यों पर नियंत्रण, और आत्मसंयम। उनका मानना था कि स्वराज तभी सार्थक है जब हर व्यक्ति आत्मनिर्भर और जिम्मेदार बने। “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।”
4. स्वावलंबन (Self-reliance): गांधी जी का मानना था कि हर व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनना चाहिए। उन्होंने ग्रामीण विकास, कुटीर उद्योगों और स्वदेशी वस्त्रों के उत्पादन पर जोर दिया। उनका विचार था कि भारत की असली शक्ति गाँवों में निहित है, और गाँवों को आत्मनिर्भर बनाकर ही देश का विकास हो सकता है। “खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।
5. सर्वधर्म समभाव (Religious tolerance): गांधी जी सभी धर्मों का समान आदर करते थे। उनका मानना था कि हर धर्म में अच्छाई होती है और हमें किसी भी धर्म को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए। उन्होंने सभी धर्मों के बीच भाईचारे और सहिष्णुता पर जोर दिया। “मैं सभी धर्मों का अनुयायी हूँ क्योंकि मैं मानता हूँ कि सभी धर्म सत्य की ओर ले जाते हैं।”
6. श्रम का सम्मान (Dignity of labor) गांधी जी का मानना था कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर प्रकार के श्रम का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने सफाई के काम को भी उतना ही महत्वपूर्ण माना जितना किसी अन्य पेशे को। वह खुद अपने आश्रम में झाड़ू लगाते और सफाई करते थे। “स्वच्छता स्वतंत्रता से भी अधिक महत्वपूर्ण है।”
7. साधन और साध्य की पवित्रता (Purity of means and ends) गांधी जी का मानना था कि लक्ष्य तक पहुँचने के लिए साधन का पवित्र होना आवश्यक है। गलत तरीके से प्राप्त की गई सफलता वास्तविक सफलता नहीं होती। इसलिए, उन्होंने हमेशा नैतिक और सच्चाई के रास्ते पर चलने की शिक्षा दी। “साधन शुद्ध होंगे तो साध्य अपने आप शुद्ध हो जाएगा।”महात्मा गांधी के विचार न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हुए, बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया में अहिंसा और सत्य की शक्ति को पहचान दिलाई। आज भी उनके विचारों की प्रासंगिकता हमें सिखाती है कि हम अपने जीवन में नैतिकता, अहिंसा, और सत्य के सिद्धांतों को अपनाकर समाज को बेहतर बना सकते हैं।
महात्मा गांधी की वक्तृत्व कला में गहनता और सादगी का समावेश था। उनके भाषणों में उनकी सत्य और अहिंसा की दृढ़ निष्ठा, सामाजिक सुधार, और स्वराज्य के प्रति अडिग संकल्प झलकता था। यहाँ उनके द्वारा दिया गया एक प्रसिद्ध भाषण का अंश है, जो उन्होंने 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान द”करो या मरो” (Quit India Movement Speech) “मैं आपको एक मंत्र देना चाहता हूँ, जो मैं अपने दिल की गहराई से महसूस करता हूँ। यह मंत्र बहुत सरल है, लेकिन इसका गहरा अर्थ है। आप इसे अपनी हृदय की गहराइयों में धारण करें। मेरा मंत्र है: ‘करो या मरो’। हम अब और इंतजार नहीं कर सकते। समय आ गया है जब हमें पूरी तरह से स्वतंत्रता के लिए खड़े होना है। हमें ब्रिटिश शासन को पूरी तरह से खत्म करना होगा और भारत को पूर्ण स्वराज्य दिलाना होगा। लेकिन हमें यह अहिंसा के रास्ते पर रहकर करना है। हमें किसी के प्रति घृणा या हिंसा नहीं रखनी है। हमारे आंदोलन का आधार सत्य और अहिंसा है, और हम इन्हीं के बल पर स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे। यदि हमारे पास साहस, धैर्य और सत्यनिष्ठा होगी, तो दुनिया की कोई भी ताकत हमें रोक नहीं सकती। हमारी लड़ाई केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए नहीं है, यह आत्म-सम्मान, आत्म-निर्भरता और सच्चाई की लड़ाई है। अब समय आ गया है जब हमें खुद को बदलना होगा और अपने देश के लिए त्याग करना होगा। यदि हम अब नहीं जागे, तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ नहीं करेंगी। इसलिए, मैं आपसे कहता हूँ: उठो, संगठित हो जाओ और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करो। हमें अपनी मातृभूमि को बंधन मुक्त कराना है। याद रखें, यह लड़ाई अहिंसा के साथ लड़ी जाएगी, लेकिन इसके लिए हमें दृढ़ संकल्प और बलिदान की आवश्यकता होगी।”यह भाषण गांधी जी के संकल्प और स्वतंत्रता के प्रति उनके अडिग विश्वास को दर्शाता है। उनकी स्पीच में लोगों को आत्म-निर्भर बनने, सत्य के मार्ग पर चलने, और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाने का संदेश मिलता था।