वकील अपनी फीस का निर्धारण कैसे करते हैं

दरअसल वकीलों की भी कई श्रेणियां होती है कुछ ऐसे वकील होते हैं जो कोर्ट के गेट के पास ही खड़े रहते हैं वे दूर ही अपने संभावित क्लाइंट को देखते रहते हैं कुछ ऐसे भी होते हैं जो कोर्ट के अंदर घूमते फिरते मिलते हैं और कुछ वकील इतने नान से अपने चेंबर में बैठे रहते हैं अब जो पहली श्रेणी होती है उन वकीलों को वहां का चलन या जुर्माना की राशि भरने के लिए क्लाइंट को ही अपनी आय का जरिया बनाना पड़ता है विशेष कर जिन्हें न्यायालय के कामकाज का नहीं पता होता। उन्हें ऐसे ही कोई एक क्लाइंट मिल जाए तो अपनी झाड़ी बना लेते हैं दूसरी श्रेणी जो आपको कोर्ट रूम में के बाहर मिलते हैं वह कई बार कुछ बड़े वकीलों के स्टैंड होते हैं जो क्लाइंट की शक्ल हवाओं देखकर उनका अपना कार्ड पकड़ा देते हैं और रिक्वेस्ट करते हैं तीसरी श्रेणी के वकील अपने चेंबर में बैठते हैं उनकी फेस वैल्यू उनके काम से होती है कोई वकील कितना महंगा है वह आपको उसके स्टाफ में जीवन शैली के माध्यम से पता चलेगा।

वास्तव में हर प्रकार के अलग-अलग अपराधों की वकालत के लिए अलग-अलग वकीलों की कीमत होती है जमीन के मामलों में क्लाइंट और वकील की अंडरस्टैंडिंग जमीन की कीमत से तय होती है हत्या जैसी क्राइम में वकील को पता होता है की जमानत 4 महीने से पहले नहीं हो पाएगी लिहाजा में कैसे को पढ़कर अपने क्लाइंट को जमानत करवाने की अपनी फीस बताते हैं उसमें सबसे बड़ी बात जमानत की होती है की जमानत कितनी जल्दी वकील कर सकता है।

वैसे चेक वापसी जमीन कब्जा आदि मामला में भी क्लाइंट वह अमाउंट देखा जाता है जो कि कोर्ट केस करने से उन्हें रात दिला सके फिलहाल कहीं ऐसे कैसे भी होते हैं विशेष कर जब किसी दहेज घरेलू अहिंसा आदि के शिकार महिला या पुरुष तब वकील करते हैं जब उन्हें दूसरे पक्ष से खर्च लेना होता है ऐसी कई मामले में वकील अपना कमीशन तय कर लेते हैं जो की कुल केस का 20 से 25% या 10% भी हो सकता है ऐसी वन दुर्घटना केस‌ में भी होता है जब किसी को क्लेम कंपनी से बड़ा अमाउंट लेना होता है। और कुछ ऐसे वकील भी होते हैं जो अपनी फीस फिक्स करके रखते हैं चाहे फिर के केस छोटा हो या बड़ा।

वकीलों के मामले में सरकार द्वारा कोई दिशा निर्देश निर्धारित नहीं किए गए हैं।

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