बौद्ध स्थलों पर हुई खुदाई से मिले अवशेष बौद्ध स्थलों पर हुई खुदाई से मिले अवशेष
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भगवान बुद्ध – “ इतिहास मिटता नहीं, मिट्टी से फिर जन्म लेता है।”
जब भी धरती की परतों को हटाया जाता है, तब समय की कहानियाँ सामने आती हैं। इन्हीं कहानियों में एक महत्वपूर्ण अध्याय है भगवान गौतम बुद्ध और उनके जीवन से जुड़े हुए पुरातात्विक अवशेषों का। ये अवशेष न सिर्फ इतिहास के गवाह हैं, बल्कि यह भी सिद्ध करते हैं कि बुद्ध का जीवन, विचार और शिक्षाएं आज भी उतनी ही जीवंत हैं।

इस लेख में हम उन प्रमुख स्थलों और खुदाई में मिले अवशेषों पर नज़र डालेंगे, जहाँ-जहाँ बुद्ध के चरण पड़े थे।

1. लुंबिनी (नेपाल) : जन्म का पवित्र स्थान :

माया देवी मंदिर लुंबिनी - नेपाल

माया देवी मंदिर लुंबिनी , नेपाल

लुंबिनी नेपाल की रूपंदेही जिले में स्थित एक शांतिपूर्ण पवित्र स्थल है जहां लगभग 563 ईसा पूर्व महारानी माया देवी ने सिद्धार्थ गौतम जी को जन्म दिया था। खुदाई के दौरान यहां मैं देवी मंदिर के नीचे एक प्राचीन चिन्ह पत्थर मिला। जिसे भगवान बुद्ध के जन्म स्थान का संकेत माना जाता है। सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तंभ जिस पर ब्राह्मी लिपि में बुद्ध के जन्म का उल्लेख है। पुरातात्विक खुदाई में प्राचीन ईंटों से बने मंदिरों और जल संरचनाओं के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। यह पवित्र स्थल भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है । यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।

2. बोधगया (बिहार) आत्मज्ञान की भूमि :

महाबोधि मंदिर,बिहार

महाबोधि मंदिर बोधगया,बिहार

बोधगया गया जिले में स्थित है और इसे भगवान बुद्ध के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है । यहां बोधिवृक्ष (एक पीपल का पेड़ ) के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। महाबोधि मंदिर को तीसरी ताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया और बाद में कई बार पुणे निर्मित कराया जा चुका है। मनबोधी मंदिर में भगवान बुद्ध की ध्यान मुद्रा में अनेक अद्भुत मूर्तियां विराजित है।
वही बोधि वृक्ष के पास बना वज्रासन ( Diomond Throne) जहां भगवान बुद्ध ने ध्यान किया था। इसको UNESCO द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा मिला हुआ है। यह बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता ह

3. सारनाथ (उत्तर प्रदेश) : पहले उपदेश की धरती :

 सारनाथ -उत्तर प्रदेश

सारनाथ, उत्तर प्रदेश

वाराणसी के पास स्थित सारनाथ वह स्थान है जहां ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध ने पहली बार अपने पांच शिष्यों को धर्म का उपदेश दिया था। जिसे धर्मचक्र परिवर्तन कहा गया। धमेख स्तूप जो गुप्त काल में निर्मित हुआ और उपदेश के स्थल को चिन्हित करता है। अशोक स्तंभ जिसका शीर्ष सिंह चिन्ह अब भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है सारनाथ का यह खास अवशेष हैं । और यहां भगवान बुद्ध की धर्म चक्र मुद्रा में प्रसिद्ध मूर्तियां भी बनी हुई है यह पवित्र स्थल बौद्ध धर्म के प्रचार की शुरुआत का प्रतीक है।

4. कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) :

कुशीनगर -उत्तर प्रदेश,भगवान बुद्ध प्रतिमा

भगवान बुद्ध प्रतिमा कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

अंतिम विश्राम स्थल : यह वही पवित्र स्थल है जहां भगवान बुद्ध ने अपने जीवन का अंतिम उपदेश दिया और महापरिनिर्वाण ( मृत्यु के बाद मोक्ष ) को प्राप्त हुए । महापरिनिर्वाण मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की 6 मीटर लंबी प्रतिमा है । जो बलवा पत्थर से बनी हुई है। भगवान बुद्ध की यह प्रतिमा विश्राम अवस्था में है। जहां भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया वहां रामभर स्तूप बना है । और कुछ प्राचीन बिहार और स्तूपों के अवशेष भी देखने को मिलते हैं। यह पवित्र स्थान मृत्यु के पर जाने की दिशा अवधारणा को दर्शाता है और आज भी शांति और श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है।

5. श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश) भारत : भगवान बुद्ध के चमत्कारों की भूमि :

चैतवन विहार,श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश)

चैत्यवन श्रावस्ती, उत्तर प्रदेश भारत

श्रावस्ती को भगवान बुद्ध के प्रवचन और चमत्कारों की नगरी कहा जाता है। भगवान बुद्ध ने यहां अपने जीवन के 24 वर्ष बिताए थे । और कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए थे। चैतवन विहार जो भगवान बुद्ध के अनुयाई अनाथ पिंडक ने दान किया था। अनाथ पिंडक का असली नाम सुधत्त था । वे श्रावस्ती के एक बहुत ही धनवान व्यापारी थे। एक बार सुधत्त व्यापार के सिलसिले में राजगृह गए थे । जहां उन्होंने भगवान बुद्ध के उपदेश सुने। उपदेश सुनने के बाद वह बहुत प्रभावित हुए। और संकल्प लिया कि वे भगवान बुद्ध और उनके संघ के लिए एक बौद्ध विहार बनाएंगे।

श्रावस्ती लौट के बाद अनाथ पिंडक ने बौद्ध बिहार के लिए उपयुक्त स्थान की खोज शुरू की। उन्हें राजा प्रसनजीत के पुत्र चैत्य का एक उद्यान बहुत ज्यादा पसंद आया। जब उन्होंने उसे खरीदने की इच्छा जताई तो चैत्य ने मजाक उड़ाते हुए कहा । यह विहार तुम नहीं खरीद सकते। जब अनाथ पिंडक ने दोबारा फिर से इच्छा जताई। चैत्य ने कहा कि इस उद्यान की पूरी भूमि को खड़ी स्वर्ण मुद्राओं से ढकना होगा । अगर तुम ऐसा करते हो तो यह उद्यान ले सकते हो। चैत्य को लग रहा था कि यह व्यापारी ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर सकता।

लेकिन अनाथ पिंडक ने इसे स्वीकार किया और उस उद्यान को खड़ी स्वर्ण मुद्राओं से ढक दिया। और एक बौद्ध विहार का निर्माण कराया। यहां भगवान बुद्ध के कुछ स्तूप और उपदेश देती हुई प्रतिमाएं हैं ‌। और खुदाई में पाए गए बर्तन दीपक, और ताम्रपत्र आदि। यह पवित्र स्थल बोधनियाओं के लिए अध्यात्म और शिक्षा दोनों का केंद्र रहा है।

6. नालंदा (बिहार): बौद्ध शिक्षा का विश्व केंद्र :

नालंदा विश्वविद्यालय,बिहार

नालंदा विश्वविद्यालय खंडहर, बिहार

नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन और संगठित आवासीय विश्वविद्यालय था। जहां लगभग 10000 से अधिक छात्र और 2000 शिक्षक रहते थे। जहां बौद्ध धर्म, तर्कशास्त्र, राजनीति विज्ञान,चिकित्सा और गणित की शिक्षा दी जाती थी। चीनी यात्री ह्वेनसांग मैं भी यहां की शिक्षा ग्रहण की थी। ईट से बने विश्वविद्यालय के खंडहर पुस्तकालय और छात्रावासो के अवशेष नालंदा में देखने को मिलते हैं। भगवान बुद्ध की बोधिसत्व प्रतिमाएं, ताम्रपत्र, पुस्तकालय और अन्य शिलालेख भी मिले हैं। नालंदा ने बौद्ध धर्म को एशिया भर में फैलाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है यह भारत की बौद्ध बौद्धिकता का प्रतीक स्थल है।

7. अंतरराष्ट्रीय बौद्ध कला और अवशेष :

गांधार शैली,भगवान बुद्ध प्रतिमा

गांधार शैली, भगवान बुद्ध प्रतिमा

गांधार शैली (पाकिस्तान अफ़गानिस्तान) मैं भगवान बुद्ध की यूनानी और रोमन प्रभाव के साथ मूर्तियों के अवशेष मिले हैं। भगवान बुद्ध के चेहरे पर ग्रीक नाक और कर्ली बाल जो उसे कल के सांस्कृतिक मिश्रण को दर्शाते हैं।

मथुरा शैली उत्तर भारत मैं भारतीय विशेषताओं वाली मूर्तियां जैसे सरल वस्त्र उभरा हुआ ऊपरी शरीर और सौम्या मुस्कान के साथ अवशेष देखने को मिलते हैं। यहां की मूर्तियां ज्यादातर बलुआ पत्थर से बनी हुई है। इन दोनों शैलियों ने बौद्ध कला को एक नया रूप दिया और पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म के इतिहास को दोबारा जिंदा किया। जरा आप सोचिए इन खुदाईयों से निकले हर अवशेष में इतिहास की सांसें बसती है । ये न सिर्फ हमारे अतीत की पहचान है, बल्कि वर्तमान और भविष्य को दिशा देने वाले मार्गदर्शक भी है। इतिहास कभी नहीं छुपता।

आखिर में कुछ :

भगवान बुद्ध से जुड़ी खुदाईयाँ केवल मिट्टी से निकली मूर्तियाँ नहीं, बल्कि वो जीवन दर्शन हैं जो आज भी मनुष्य को आत्मज्ञान, शांति और करुणा का रास्ता दिखाते हैं। इन स्थलों को समझना, देखना और संरक्षित करना हमारी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी है।

हर मूर्ति, हर स्तंभ और हर अवशेष एक कहानी कहता है बुद्ध की, उनके विचारों की, और मानवता की उस यात्रा की जो अज्ञान से ज्ञान की ओर जाती है।
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