तक्षशिला विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद् था, जहाँ दूर-दूर से छात्र ज्ञान प्राप्त करने आते थे। इसी विश्वविद्यालय में एक छात्र था, जिसका नाम था वीरभद्र । वह अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान की पिपासा के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन नियति ने उसके लिए एक अलग ही कहानी लिख रखी थी—एक ऐसी कहानी, जिसमें विद्वत्ता और जुनून के बीच की रेखा धुंधली पड़ गई और उसने एक ऐसा रास्ता चुन लिया, जिसने उसे नरभक्षी बना दिया।
बचपन और शिक्षा :
वीरभद्र एक अत्यंत मेधावी छात्र था। अन्य छात्रों की तुलना में उसकी जिज्ञासा कहीं अधिक थी। जब अन्य विद्यार्थी खेल-कूद में व्यस्त रहते, तब वीरभद्र पुस्तकालय में बैठकर अध्ययन करता। उसकी लगन और कठोर परिश्रम को देखकर स्वयं आचार्य चाणक्य और विश्वविद्यालय के कुलपति भी प्रभावित थे।
वीरभद्र की विशेषता यह थी कि वह केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं रहता था, बल्कि वह हर विषय की गहराई में जाना चाहता था। उसे हर उस चीज़ का ज्ञान प्राप्त करने की लालसा थी, जो दुनिया में उपलब्ध थी। लेकिन यही ज्ञान की भूख धीरे-धीरे उसके लिए एक अभिशाप बन गई।

गुप्त पुस्तकालय का रहस्य :
तक्षशिला विश्वविद्यालय में एक गुप्त पुस्तकालय था, जिसमें केवल आचार्य और कुलपति को ही प्रवेश की अनुमति थी। यह पुस्तकालयतंत्र-मंत्र और दुर्लभ शास्त्रों से भरा हुआ था, जिनमें तंत्र-मंत्र, रहस्यमयी विद्याएँ, और अकल्पनीय शक्तियों की जानकारी थी। वीरभद्र को जब इस पुस्तकालय के बारे में पता चला, तो उसकी जिज्ञासा बढ़ गई।
उसने कुलपति से इस पुस्तकालय में प्रवेश की अनुमति मांगी, लेकिन उसे यह कहकर मना कर दिया गया कि यह ज्ञान हर किसी के लिए नहीं है। वीरभद्र इसे स्वीकार नहीं कर सका। उसने कई बार चोरी-छिपे पुस्तकालय में प्रवेश करने का प्रयास किया। पहली बार सफल रहा, दूसरी बार भी बच निकला, लेकिन तीसरी बार पकड़ा गया।
तक्षशिला से निकाला और प्रतिशोध की आग :
गुप्त पुस्तकालय में चोरी-छिपे प्रवेश करने का अपराध इतना गंभीर था कि वीरभद्र को तक्षशिला विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। यह उसके लिए एक बड़ा आघात था। जिस स्थान को वह अपना तीर्थ मानता था, वहाँ से निकाले जाने के बाद उसके भीतर एक जलती हुई आग पैदा हो गई—ज्ञान की भूख अब प्रतिशोध में बदल गई।
उसने शपथ ली कि वह तक्षशिला का विनाश करेगा और स्वयं इतना शक्तिशाली बनेगा कि कोई भी उसे रोक न सके।
नरभक्षियों के बीच जीवन :
अपना बदला लेने के लिए वीरभद्र जंगलों में चला गया, जहाँ वह तांत्रिकों और नरभक्षियों के एक कबीले से मिला। उसने उनसे रहस्यमयी विद्याएँ सीखनी शुरू कीं। धीरे-धीरे वह भी उनके जैसा बन गया—एक नरभक्षी, जो केवल मांसाहार ही नहीं करता था, बल्कि तांत्रिक शक्तियाँ भी प्राप्त कर चुका था।
लेकिन उसके मन से तक्षशिला और उसका गुप्त पुस्तकालय कभी गया नहीं। वह जानता था कि अगर वह वहाँ तक पहुँच जाए, तो अनंत शक्ति हासिल कर सकता है। इसी विचार के साथ उसने अपने साथियों के साथ मिलकर तक्षशिला के नीचे एक सुरंग खोदी , जो सीधे गुप्त पुस्तकालय तक पहुँचती थी।
रहस्यमयी ग्रंथों की शक्ति :
जब वह पुस्तकालय में पहुँचा, तो उसकी आँखें चमक उठीं। वहाँ तंत्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, युद्धकला, और अनगिनत गूढ़ विद्याओं की किताबें रखी हुई थीं। उसने उनमें से कई ग्रंथों का अध्ययन किया और अपनी तांत्रिक शक्ति को और भी बढ़ा लिया।
कुछ ही वर्षों में वह अघोरनाथ नामक एक शक्तिशाली तांत्रिक बन गया, जिसकी शक्ति की कोई तुलना नहीं थी। वह विशालकाय शरीर वाला नरभक्षी बन चुका था, जिस पर किसी अस्त्र-शस्त्र का प्रभाव नहीं होता था। कहा जाता है कि वह आग में भी समा सकता था, लेकिन उसे कोई क्षति नहीं पहुँचती थी।

तक्षशिला का आतंक :
अघोरनाथ के रूप में वह तक्षशिला लौट आया। उसका लक्ष्य केवल प्रतिशोध लेना था। उसने कई छात्रों और आचार्यों पर हमला किया। धीरे-धीरे उसकी शक्ति बढ़ती गई, और तक्षशिला पर उसका आतंक छाने लगा। लेकिन आचार्य चाणक्य जैसे विद्वान उसकी योजना को भाँप गए। उन्होंने उसकी शक्तियों को खत्म करने के लिए एक विशेष अनुष्ठान किया, जिससे उसकी तांत्रिक ऊर्जा क्षीण हो गई। कहा जाता है कि अंततः वह अपने ही जाल में फँसकर नष्ट हो गया।
आखिर में कुछ :
वीरभद्र की यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान की असीम लालसा अगर सही दिशा में न बढ़े, तो यह विनाश का कारण बन सकती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल शक्ति प्राप्त करना नहीं, बल्कि उसका सदुपयोग करना होता है। वीरभद्र ने अपने असाधारण बुद्धि का गलत उपयोग किया और अंततः उसने अपने ही जीवन को नष्ट कर लिया।
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