भगवान बुद्धभगवान बुद्ध
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एक बार भगवान बुद्ध के एक शिष्य ने उनसे निवेदन किया, “गुरुवर! मेरे वस्त्र पुराने हो चुके हैं। अब वे पहनने योग्य नहीं रहे। कृपया मुझे नए वस्त्र देने की कृपा करें ।

भगवान बुद्ध ने शिष्य के वस्त्र देखे। वे जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे, जगह-जगह से घिस चुके थे और सिलाई भी उधड़ने लगी थी। बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद को नए वस्त्र लाने का आदेश दिया। शिष्य को नए वस्त्र मिल गए और वह अत्यंत प्रसन्न हुआ।

भगवान बुद्ध

भगवान बुद्ध का प्रश्न और शिष्य का उत्तर :

कुछ दिनों बाद बुद्ध अपने शिष्य के घर पहुंचे और पूछा, ‘वत्स! क्या तुम अपने नए वस्त्रों से खुश हो? तुम्हें और कुछ चाहिए ?

शिष्य ने नतमस्तक होकर उत्तर दिया, ‘गुरुवर, मैं इन वस्त्रों में पूर्ण रूप से आरामदायक महसूस कर रहा हूँ। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। आपका असीम धन्यवाद।

भगवान बुद्ध ने मुस्कराकर कहा, “अब जब तुम्हारे पास नए वस्त्र हैं, तो तुमने अपने पुराने वस्त्रों का क्या किया?”

शिष्य ने उत्तर दिया, “गुरुवर, मैंने पुराने वस्त्रों को ओढ़नी के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।”

भगवान बुद्ध ने पुनः पूछा, “तो फिर तुमने अपनी पुरानी ओढ़नी का क्या किया?”

शिष्य ने कहा, “गुरुवर, मैंने उसे खिड़की पर परदे के रूप में लगा दिया है, ताकि धूप और धूल को रोका जा सके।”

भगवान बुद्ध ने फिर प्रश्न किया, “तो क्या तुमने पुराने परदे को फेंक दिया?”

शिष्य ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “नहीं गुरुवर, मैंने उसके चार टुकड़े कर लिए और उनका उपयोग रसोई में गर्म बर्तनों को पकड़ने के लिए कर रहा हूँ।”

भगवान बुद्ध मुस्कराए और बोले, “तो फिर तुमने पुराने रसोई के कपड़ों का क्या किया?”

शिष्य बोला, “गुरुवर, जब वे और भी पुराने हो गए, तो मैंने उनका उपयोग पोछा लगाने के लिए करना शुरू कर दिया।”

बुद्ध ने पुनः पूछा, “और जब वह पोछा भी काम का नहीं रहा, तब तुमने क्या किया?”

शिष्य ने उत्तर दिया, “गुरुवर, वह इतना तार-तार हो चुका था कि उसका और कोई उपयोग नहीं रह गया था। इसलिए मैंने उसके एक-एक धागे को निकालकर दीये की बत्तियाँ बना लीं। उन्हीं में से एक दीपक कल आपके कक्ष में प्रकाशित था।”

भगवान बुद्ध की प्रसन्नता और शिक्षा :

भगवान बुद्ध शिष्य की समझदारी और संसाधनों संसाधनों के सदुपयोग को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “तुम्हारी सोच सराहनीय है, वत्स! जो व्यक्ति संसाधनों का उचित उपयोग करना जानता है, वह न केवल स्वयं का कल्याण करता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपना उत्तरदायित्व निभाता है।”

हमें क्या शिक्षा मिली :

हमें जीवन में उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम और विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए।

व्यर्थ खर्च और संसाधनों की बर्बादी से बचना चाहिए।

यदि हम सोच-समझकर वस्तुओं का उपयोग करें, तो हम न केवल धन की बचत कर सकते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे सकते हैं।

हर वस्तु को उसके अंतिम उपयोग तक कार्य में लाने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए।

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