“एक और मौका: जिंदगी बदलने की कहानी””एक और मौका: जिंदगी बदलने की कहानी”
एक बार मैं अपने गाँव जा रहा था। रास्ते में एक छोटे से स्टेशन पर ट्रेन रुकी। वहाँ 15 मिनट का ठहराव था, इसलिए मैं थोड़ी देर टहलने के लिए प्लेटफार्म पर उतर गया। स्टेशन पर काफी भीड़ थी। मेरी नजर अचानक एक बेंच पर बैठे एक व्यक्ति पर पड़ी। मैं उसे गौर से देख ही रहा था कि ट्रेन का हॉर्न बजा, और मैं जल्दी से अपनी सीट पर लौट आया।ट्रेन में बैठते ही मैंने चाय का आर्डर दिया। चाय पीते-पीते मेरे दिमाग में पुरानी यादें तैरने लगीं। मुझे वह रात याद आई जब मैं खुद रेलवे स्टेशन पर बैठा था, अपनी जिंदगी की परेशानियों से जूझ रहा था।रात गहराने लगी थी। तभी एक व्यक्ति ने मुझसे माचिस मांगी। मैंने जवाब दिया, मैं सिगरेट नहीं पीता।वह मुस्कुराकर बोला, भाई! मैंने सिगरेट नहीं, माचिस मांगी है।मैं थोड़ा चिढ़ते हुए बोला, जब मैं सिगरेट नहीं पीता, तो माचिस क्यों रखूं?वह हंसते हुए चायवाले से माचिस और चाय मंगवाने लगा। फिर मुझसे कहा, हाँ, आपकी बात सही है, पर मैंने सोचा…मैंने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा, आप क्या सोचते हैं, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप बेवजह मुझे परेशान कर रहे हैं। अपना काम कीजिए।इतना कहकर मैं दूसरी बेंच पर जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद चायवाला आया और मुझे चाय देने लगा।मैंने हैरान होकर पूछा, मैंने चाय कब ऑर्डर की?वह बोला आपने नही उन साहब ने आपके लिए मंगवाई हैअब मैं और गुस्से में जाकर उस व्यक्ति से भिड़ गया, आपकी प्रॉब्लम क्या है? मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं?वह शांत स्वर में बोला, भाई, मैंने सोचा बारिश हो रही है, ठंड भी है, आप थके हुए लग रहे हैं। चाय से शायद थोड़ा आराम मिलेगा।मैंने फिर चिढ़कर कहा, यही तो हमारे देश की समस्या है, कोई किसी को चैन से बैठने भी नहीं देता। मैंने सोचा था स्टेशन पर आराम से बैठूंगा, लेकिन आप आ गए।इतना कहकर मैं उसे छोड़कर जाने को हुआ, लेकिन वह अब भी शांत था।
उसने मुस्कुराते हुए कहा, क्यों परेशान हो? क्या हुआ?इस बार उसकी शांति ने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। मैंने थोड़ा रुककर पूछा, आपको जानकर क्या मिलेगा?”वह बोला, शायद तुम्हारी परेशानी का हल मिल जाए, या कम से कम तुम्हारे दिल का बोझ थोड़ा हल्का हो जाए।उसकी बातों में एक सुकून था। मैंने हिम्मत जुटाई और उसे अपने जीवन की कहानी सुनाने लगा। मैंने बताया कि मेरे पिताजी एक सरकारी दफ्तर में चपरासी थे, और मेरी माँ लोगों के घरों में काम करके मुझे पढ़ा रही थीं। मेरे पिताजी का सपना था कि मैं आईपीएस अफसर बनूं, लेकिन मेरा सपना अलग था। मुझे नौकरी करने से ज्यादा लोगों को नौकरी देना अच्छा लगता था।पिताजी ने मेरे सपनों का सम्मान करते हुए गाँव की ज़मीन बेचकर मुझे पैसे दिए, और मैंने अपना व्यापार शुरू किया। सब कुछ अच्छा चल रहा था। मैंने शादी भी कर ली, और दो प्यारे बच्चे भी हो गए। शुरुआती कुछ सालों में व्यापार बहुत अच्छा चला। मैं बहुत खुश था, लेकिन एक गलत निवेश ने सब कुछ बर्बाद कर दिया। धीरे-धीरे सारी संपत्ति खत्म हो गई। अब सिर्फ मकान बचा है, और अगर कल किस्त नहीं भरी तो वो भी नीलाम हो जाएगा।मेरी बात सुनकर वह व्यक्ति गंभीरता से बोला, तुम अपने आप को एक और मौका क्यों नहीं देते? हो सकता है सब ठीक हो जाए।फिर उसने पूछा, क्या तुमने कभी अभिषेक वर्मा का नाम सुना है?
मैंने सोचा, क्या वही जो काफी फेमस बिजनेसमैन है?वह बोला, हाँ, वही! कुछ साल पहले वह भी बर्बादी की कगार पर था। उसके पास चाय के पैसे तक नहीं थे। लेकिन उसने अपने आप को एक और मौका दिया, और आज वह पहले से ज्यादा सफल है।मैंने उसकी बात सुनकर कहा, ये सब फिल्मी बातें हैं, असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता। और फिर आपकी हालत भी तो मुझसे बेहतर नहीं लग रही। कपड़े फटे हुए, चश्मा टूटा हुआ, और हाथों में लकड़ी! वैसे आप हैं कौन?उसने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, मैं ही अभिषेक वर्मा हूँ।यह सुनकर मैं हक्का-बक्का रह गया। उसने बेंच से उठते हुए कहा, मैं रोज़ इस समय अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा करने स्टेशन आता हूँ। और अगर मुझे कोई मेरी जैसी हालत में मिलता है, तो उससे बातें कर लेता हूँ।”इतना कहकर वह बाहर निकला और एक चमचमाती कार में बैठकर चला गया।उस रात के बाद मैंने भी अपने आप को एक और मौका देने का फैसला किया। अगले दिन मैंने बैंक जाकर अपनी समस्या बताई, और थोड़ी मोहलत मांगी। बैंक ने मेरा रिकॉर्ड देखकर मुझे थोड़ा वक्त दिया और फाइनेंस की भी व्यवस्था कर दी। मैंने फिर से अपने व्यवसाय को शुरू किया और धीरे-धीरे सबकुछ पटरी पर आने लगा। आज मैं फिर से सफल हूँ।ट्रेन की सीट पर बैठा मैं ये सब सोच ही रहा था कि टीटी की आवाज़ ने मुझे वर्तमान में खींच लिया। मैंने टिकट दिखाया और देखा कि मेरा स्टेशन भी आने वाला था। कुछ देर बाद मैं ट्रेन से उतर कर टैक्सी में बैठा और घर की ओर चल पड़ा।हो सकता है, आप भी कभी जीवन की कठिनाइयों से हार मान बैठे हों। शायद आपके पास कोई “अभिषेक वर्मा” न आए, लेकिन फिर भी, खुद को एक और मौका देना कभी बंद मत कीजिए। हो सकता है, आपकी ज़िंदगी भी बदल जाए। याद रखें, जब तक हम खुद को एक और मौका नहीं देंगे, तब तक हमें कभी पता नहीं चलेगा कि हम क्या कर सकते हैं।
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